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मज्ज र ( २३८ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 गिहे तेणेव अणुपविसह, अणुपविसित्ता कण्हं वासुदेवं करयलपरिग्गहियं एवं वयह-‘एवं खलु दा र सामी ! तुब्भं पिउच्छा कोंती देवी हत्थिणाउराओ नयराओ इह हव्वमागया तुब्भं दंसणं कंखति।' टी 5 सूत्र १५४ : महारानी कुन्ती ने पाण्डु राजा की बात स्वीकार कर ली और स्नानादि कर तैयार दा 2 होकर हाथी पर सवार हुई। हस्तिनापुर के बीच से होती कुरु देश को पार किया और फिर सुराष्ट्र । र जनपद में होती हुई द्वारका नगरी के बाहर पहुँच श्रेष्ठ उद्यान में ठहरीं। हाथी से नीचे उतर कर टा 5 अपने सेवकों को बुलाया और कहा-“देवानुप्रियो ! द्वारका नगरी में प्रवेश कर कृष्ण वासुदेव के दा र पास जाकर यथाविधि वन्दन कर कहना–“हे स्वामी ! आपके पिता की बहन कुन्ती देवी हस्तिनापुर डा र से यहाँ आई है और आपके दर्शनों की इच्छा करती हैं।" 5 KUNTI GOES TO KRISHNA - 154. Queen Kunti accepted the request of King Pandu. She got ready after SI 2 taking her bath and dressing up and rode an elephant. She moved through S 5 the streets of Hastinapur city and crossing Kuru and Surashtra states , 15 reached the outskirts of Dwarka. She camped in a beautiful garden. After 2)
getting down from the elephant she called her servants and said, “Beloved of gods! Enter Dwarka, go to Krishna Vasudev, and after extending
courtesy tell him, 'Sire! Queen Kunti, your father's sister has arrived here 2 from Hastinapur and desires to behold you.” __सूत्र १५५ : तए णं कोडुबियपुरिसा जाव कहेंति।
तए णं कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हद्वतुढे टा ई हत्थिखंधवरगए बारवईए नयरीए मझमज्झेणं जेणेव कोंती देवी तेणेव उवागच्छइ, डा र उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता कोंतीए देवीए पायग्गहणं करेइ, करित्ता टा 5 कोंतीए देवीए सद्धिं हत्थिखंधं दुरूहइ, दुरूहित्ता बारवईए नगरीए मझमझेणं जेणेव सए गिहे द्रा र तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं गिहं अणुपविसइ। 5 सूत्र १५५. सेवकों ने वासुदेव कृष्ण के पास जाकर कुन्ती देवी के आगमन का समाचार कहा। डा र कृष्ण वासुदेव यह समाचार जानकर प्रसन्न व संतुष्ट हुए और हाथी पर सवार हो वहाँ आये । 5 जहाँ उद्यान में कुन्ती देवी ठहरी थीं। हाथी से उतर कर उन्होंने कुन्ती देवी के चरण स्पर्श किये दा र और उन्हें साथ ले पुनः हाथी पर सवार हो नगर के मध्य होते हुए अपने महल में आये। डी 5 155. The servants went to Krishna Vasudev and conveyed the news of the 15 arrival of queen Kunti. 12 Krishna Vasudev was pleased and contented to hear this news and riding
an elephant he came to the camp of queen Kunti. He got down from the
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JOURUJAL
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA yinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny
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