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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 उपसंहार
र सूत्र २८ : एवामेव समणाउसो ! जो अहं णिग्गंथो वा णिग्गंथी वा पव्वइए समाणे इट्टेसु डा 15 सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु सज्जति, रज्जति, गिज्झति, मुज्झति, अज्झोववज्जति, से णं इह टा
र लोगे चेव बहूणं समणाण य जाव सावियाण य हीलणिज्जे जाव अणुपरियट्टिस्सइ। 5 सूत्र २८ : हे आयुष्मान श्रमणो ! इसी प्रकार हमारा जो निर्ग्रन्थ व निर्ग्रन्थी दीक्षित होकर डा र प्रिय शब्द, रस, स्पर्श, रूप और गंध के प्रति आकर्षित, मुग्ध और आसक्त होता है उनमें 2 15 लुब्ध हो जाता है। वह इसी लोक में अनेक श्रमण, श्रमणियों, श्रावक, श्राविकाओं की दा र अवहेलना का पात्र होता है तथा चतुर्गति रूप संसारअटवी में पुनः पुनः भ्रमण करता है। B CONCLUSION 5 28. Long-lived Shramans ! In this way those of our ascetics who, after द ► getting initiated, are attracted, allured, or enticed by the subjects of the five S
senses of sound, touch, taste, form and smell become the objects of neglect by many ascetics and lay persons and are caught in the cycles of rebirth 5 indefinitely. 5 इन्द्रियलोलुपता का दुष्फल र सूत्र २९ : कल-रिभिय-महुर-तंती-तलताल-वंस-कउहाभिरामेसु।
सद्देसु रज्जमाणा, रमंति सोइंदियवसट्टा ॥१॥ र सूत्र २९ : सुनने में सुखद व आकर्षक, गुंजन लिए वीणा, ताल व बाँसुरी जैसे श्रेष्ठ और 5 मनोहारी वाद्यों के शब्दों में अनुरक्त होने वाले श्रोत्रेन्द्रिय के वशीभूत प्राणी ऐसे संगीत को ट र आनन्ददायक मानते हैं॥१॥
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HARMS OF INDULGENCE 5 29. The beings who are slaves of the sense of hearing and are enticed by a 15 the pleasing and enchanting sound of good quality musical instruments like 5 Veena, drums, and flute consider such music to be the source of bliss. (1)
सोइंदियदुइंत-तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो।
दीविगरुयमसहतो, वहबंधं तित्तिरो पत्तो॥२॥ र किन्तु श्रोत्रेन्द्रिय का यह दुर्दान्त आकर्षण वैसा ही दोषपूर्ण होता है जैसे व्याध (शिकारी) के दी 15 पिंजरे में रहे तीतर का स्वर स्वतन्त्र तीतर को आकर्षित कर व्याध के जाल में ले आता है और दा र उसके बंधन और वध का कारण बन जाता है॥२॥ र (292)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA ) FinnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
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