________________
ज्ज्ज्ज्ज
सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
( २५९ )
As instructed by Krishna the Pandavs came to the river bank, searched for a boat and then crossed the Ganges. After they disembarked they conferred, "Beloved of gods! Let us see if Krishna Vasudev is strong enough to swim across the great Ganges." Agreeing to this they hid the boat and waited for Krishna.
सूत्र १९८ : तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवई पासइ, पासित्ता जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एगट्टियाए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करित्ता एगट्ठियं णावं अपासमाणे एगाए बाहाए रहं सतुरंग ससारहिं गेण्हइ, एगाए बाहाए गंगं महादि वास जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिन्नं उत्तरितं पयत्ते यावि होत्था ।
तणं हे वासुदेवे गंगामहाणईए बहूमज्झदेसभागं संपत्ते समाणे संते तंते परितंते बद्धसेए जाये या होत्था ।
सूत्र १९८ : उधर कृष्ण वासुदेव लवणाधिपति सुस्थितदेव से मिलकर गंगा महानदी के तट पर आये। वहाँ उन्होंने चारों ओर नाव की खोज की पर नौका कहीं दिखाई नहीं दी । तब उन्होंने अपने एक हाथ में अश्व और सारथी सहित रथ को उठाया और दूसरे हाथ से तैरते हुए साढ़े बासठ योजन विस्तार वाली गंगा महानदी को पार करने लगे ।
कृष्ण वासुदेव जब गंगा नदी के बीचों बीच पहुँचे तो थक गये, उन्हें पसीना आ गया। उन्हें नाव की आवश्यकता महसूस हुई और नाव न होने से बहुत खेद हुआ ।
198. Krishna came to the bank of the Ganges after his meeting with the master of the Lavan sea. He searched all around for a boat in vain. He then lifted the chariot with the driver in one hand and started swimming with the help of the other. This way he commenced the sixty two and a half Yojan long swim. When he reached midway he felt tired. He was perspiring profusely. He acutely felt the need of a boat and was sorry not to have one.
सूत्र १९९ : तए णं कण्हस्स वासुदेवस्स इमे एयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था - 'अहो णं पंच पंडवा महाबलवग्गा, जेहिं गंगा महाणदी बावट्ठि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिन्ना बाहाहिं उत्तिणा । इच्छंतएहिं णं पंचहि पंडवेहिं पउमणाभे राया जाव णो पडिसेहिए।'
तए णं गंगा देवी कण्हस्स इमं एयारूवं अज्झत्थियं जाव जाणित्ता थाहं वियरइ । तए णं से कण्हे वासुदेवे मुहत्तंतरं समासासेइ, समासासित्ता गंगामहाणदिं बावडिं जाव उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंच पंडवे एवं वयासी - अहो णं तुभ २ देवाणुप्पिया ! महाबलवगा, जेहिणं तुब्भेहिं गंगा महाणदी बावट्ठि जाव उत्तिष्णा, इच्छंत एहिं तुमेहिं पउमनाहे जाव णो पडिसेहिए ।
CHAPTER - 16: AMARKANKA
Jain Education International
For Private Personal Use Only
(259)
www.jainelibrary.org