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चौदहवाँ अध्ययन ः तेतलिपुत्र ।
( १४३ ) SI र सूत्र ५१ : तेतलिपुत्र अनगार ने कनकध्वज राजा और वहाँ उपस्थित विशाल जन परिषद् को दी 5 धर्म का उपदेश दिया। र राजा कनकध्वज ने धर्मोपदेश सुन-समझकर पाँच अणुव्रत और सात शिक्षा व्रत सहित 15 श्रावकधर्म स्वीकार किया और जीव-अजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक बन गया।
अनेक वर्षों तक केवली अवस्था में रहकर तेतलिपुत्र सिद्ध हो गए। 5 51. Ascetic Tetaliputra gave his religious discourse to the large 2 assemblage including king Kanak-dhvaj. 5 King Kanak-dhvaj, after hearing and understanding the preaching 15 accepted the five minor vows and seven disciplinary vows to became a 5 Shramanopasak having knowledge of fundamentals like soul and matter. र After spending many years in the state of a Kevali (omniscient) K Tetaliputra became a Siddh (the state of the liberated). र सूत्र ५२ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं चोद्दसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे 5 पन्नत्ते त्ति बेमि। र सूत्र ५२ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने चौदहवें ज्ञात अध्ययन का यही अर्थ कहा है। र मैंने जैसा सुना वैसा ही कहा है।
52. Jambu! This is the text and the meaning of the fourteenth chapter of the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard and so I confirm.
॥ चोद्दसमं अज्झयणं समत्तं ॥
। चौदहवाँ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF THE FOURTEENTH CHAPTER ||
FennnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAnn
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E CHAPTER-14 : TETALIPUTRA
(143) दा Earninnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny
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