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सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
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रहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता किड्डावियाए लेहियाए य सद्धिं सयंवरमंडवं अणुपविसइ, करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु तेसिं वासुदेवपामुक्खाणं बहूणं रायवरसहस्साणं पणामं करेइ ।
सूत्र ११४ : कुमार धृष्टद्युम्न द्रौपदी के इस रथ के सारथी बने । राजकुमारी द्रौपदी कांपिल्यपुर नगर के बीच से होकर स्वयंवर मण्डप की ओर गई। वहाँ रथ रोका गया और द्रौपदी नीचे उतरी। अपनी क्रीड़ा धाय और दासियों के साथ उसने स्वयंवर मण्डप में प्रवेश किया और दोनों हाथ जोड़ कर वहाँ उपस्थित वासुदेव आदि राजाओं को यथा विधि प्रणाम किया ।
114. Prince Dhrishtadyumn became the driver of her chariot. Passing through the streets of Kampilyapur city Draupadi came to the Svayamvar pavilion. The chariot was stopped there and Draupadi got down. She entered the pavilion with her Krida-Dhatri and maids and joining her palms she conveyed her formal respectful greetings to Krishna Vasudev and other kings.
सूत्र ११५: तए णं सा दोवई रायवरकन्ना एगं महं सिरिदामगंडं, किं ते? पाइल-मल्लिय-चंपय जाव सत्तच्छयाईहिं गंधद्धणिं मुयंतं परमसुहफासं दरिसणिज्जं गिण्हइ ।
सूत्र ११५ : कुमारी द्रौपदी ने फूल मालाओं का एक बड़ा गजरा हाथों में उठाया । यह गजरा पाटल, मल्लिका, चम्पक, सप्तपर्ण आदि फूलों से गूंथा हुआ था, उसमें से सुगंध निकल रही थी, उसका स्पर्श सुखद था और वह दर्शनीय था ।
115. Princess Draupadi picked up a thick entwined garland of flowers. This garland was made up of Patal, Mallika, Champak, Saptparn, and other flowers. It was fragrant, soft and beautiful.
राजाओं का परिचय
सूत्र ११६ : तए णं सा किड्डाविया सुरूवा जाव वामहत्थेणं चिल्लगं दप्पणं गहेऊण सललियं दप्पणसंकेतबिंबसंदंसिए य से दाहिणेणं हत्थेणं दरिसिए पवररायसी । फुड - विसय-विसुद्ध - रिभिय-गंभीर - महुर- भणिया सा तेसिं सव्वेसिं पत्थिवाणं अम्मापिऊणं वंस- सत्त- सामत्थ-गोत्तविक्कंति-कंति-बहुविहआगम-माहप्प-रूव- जोव्वणगुण- लावण्ण - कुल-सील - जाणिया कित्तणं करे |
सूत्र ११६ : द्रौपदी की क्रीड़ा-धात्री ने अपने बायें हाथ में एक चमकता हुआ दर्पण लिया। उस दर्पण में जिस राजा का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता उस श्रेष्ठ सिंह के समान राजा को अपने दाहिने हाथ से वह द्रौपदी को दिखलाने लगी। साथ ही स्फुट-स्पष्ट विशद, विशुद्ध, लय युक्त, गम्भीर और मधुर वचनों में उन राजाओं के मातृ एवं पितृ वंशों, सत्त्व (शक्ति) सामर्थ्य, गोत्र, पराक्रम, कान्ति, शास्त्र ज्ञान; विस्तृत ज्ञान, महात्म्य, रूप, यौवन, गुण, लावण्य, कुल शील आदि को जानकर उनका विवरण प्रस्तुत करने लगी ।
CHAPTER - 16 : AMARKANKA
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