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फुज्ज
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THE INTRODUCTION OF KINGS
116. The Krida-Dhatri of Draupadi took a shining mirror in her left hand. She pointed with her right hand at the gorgeous lion-like king whose reflection Draupadi saw in the mirror. At the same time she enquired about and portrayed his lineage, power, strength, clan name, valor, brilliance, knowledge of the scriptures, general knowledge, greatness, physical appearance, youth, virtues, charm, family virtues etc. in clear, loud, pure, accentuated, deep and sweet voice.
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सूत्र ११७ : पढमं जाव वहिपुंगवाणं दसदसारवरवीरपुरिसाणं तेलोक्कबलवगाणं सत्तु-सय-सहस्स-माणावमद्दगाणं भवसिद्धिय-पवरपुंडरीयाणं चिल्लगाणं बल-वीरिया-रूवजोव्वण- गुण - लावण्णकित्तिया कित्तणं करेइ । ततो पुणो उग्गसेणमाईयाणं जायवाणं । भाइ य'सोहग्गरूवकलिए वरेहि वरपुरिसगंधहत्थीणं जो हु ते होइ हियय-दइयो ।'
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
सूत्र ११७ : सर्वप्रथम उसने वृष्णियों (श्रीकृष्ण के कुल वंश) में मुख्य दस दशार वीरों का वर्णन किया जो तीनों लोकों में सबसे बलवान थे, लाखों शत्रुओं का मान मर्दन करने वाले थे, भव्य जीवों में श्रेष्ठ श्वेत कमल के समान शोभित थे और तेज से देदीप्यमान थे । गुण कीर्तन करने वाली उस धात्री ने इसके बाद उग्रसेन आदि यादवों का वर्णन किया और कहा - " ये यादव सौभाग्य और रूप से सुशोभित हैं और श्रेष्ठ पुरुषों में गंधहस्ती के समान हैं। इनमें से कोई तेरे हृदय को प्रिय हो तो उसका वरण कर ।"
117. First of all she described the ten Dashar braves, the leaders among the Vrishnis (Krishna Vasudev's clan), who were the strongest in the three realms, the conquerors of millions of foes, like white lotuses among the noble souls, and radiant with aura. After these the bard-like maid described the Yadavs including Ugrasen and said, "These Yadavs are endowed with good fortune and beauty, and like Gandh-hasti (the king elephant emanating fragrance of the rut-fluid) among the virtuous. If you are drawn toward any one of these you may choose him."
पाँच पति वरण
सूत्र ११८ : तए णं सा दोवई रायवरकन्नगा बहूणं रायवरसहस्साणं मज्झमज्झेणं समतिच्छमाणी समतिच्छमाणी पुव्वकयनियाणेणं चोइज्जमाणी चोइज्जमाणी जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते पंच पंडवे तेणं दसद्धवण्णेणं कुसुमदामेणं आवेढियपरिवेढियं करे, करित्ता एवं वयासी - 'एए णं मए पंच पंडवा वरिया । '
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सूत्र ११८ : राजकुमारी द्रौपदी इस प्रकार अनेक सहस्र श्रेष्ठ राजाओं के बीच होकर उनका अतिक्रमण करती-करती पूर्वकृत निदान ( नियाणा) से प्रेरित हो वहाँ पहुँची जहाँ पाँच पाण्डव बैठे
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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