________________
-
卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण
-
ग्यारहवाँ अध्ययन : दावद्रव
(६१) दा जह उभयवाउविरहे सव्वा तरुसंपया विणट्ठ त्ति। अनिमित्तोभयमच्छररूवेण विराहण तह य॥६॥ जह उभयवायुजोगे सव्वसमिड्ढी वणस्स संजाया। तह उभयवयणसहणे सिवमग्गाराहण पुण्णा ॥७॥ ता पुण्णसमणधम्माराहणचित्तो सया महासत्तो।
सव्वेण वि कीरंतं सहेज्ज सव्वं पि पडिकूलं ॥८॥ 5 जैसे दावद्रव जाति के वृक्ष हैं वैसे साधु को समझना चाहिए। द्वीप सम्बन्धी वायु के समान द र अपने पक्ष के श्रमणों के दुस्सह वचन समझने चाहिए॥१॥ 15 जैसे समुद्री पवन है वैसे अन्य तीर्थकों (दूसरे मतावलम्बी) के कटु वचनों को समझना चाहिए। टा र वृक्षों की पुष्प आदि सम्पत्ति मोक्ष मार्ग की आराधना के समान है।।२।।
इस सम्पत्ति का अभाव है मोक्ष मार्ग की विराधना। जैसे द्वीप सम्बन्धी वायु के सुप्रभाव से दा र समृद्धि अधिक और असमृद्धि कम होती है।॥३॥
__ वैसे ही साधर्मिकों के दुर्वचनों को सहन करने से बहुत आराधना होती है किन्तु अन्य-धार्मिकों द र के दुर्वचनों को सहन न करने से किंचित् विराधना भी होती है॥४॥ र जैसे सामुद्रिक वायु का संयोग मिलने पर किंचित् समृद्धि और अधिक असमृद्धि होती है वैसे ड र ही परपक्ष के वचन सहने से थोड़ी आराधना होती है और साधर्मिकों के वचन न सहने से 15 विराधना अधिक होती है॥५॥ र जैसे दोनों प्रकार के पवन के अभाव में पेड़ों की समस्त सम्पदा नष्ट हो जाती है वैसे ही बिना के कारण दोनों के प्रति मत्सरता होने से सर्व-विराधना होती है।॥६॥
__जैसे दोनों प्रकार के पवन के योग से पेड़ों की समस्त सम्पदा फलती-फूलती है वैसे ही दोनों 5 पक्षों के प्रति सहनशीलता रखने से सर्व-आराधना होती है॥७॥ 5 अतः जिसके मन में श्रमण धर्म की पूर्ण आराधना करने की इच्छा है वह सभी के प्रतिकूल टा र व्यवहार के प्रति सहनशील बना रहे॥८॥
.)
| THE MESSAGE
The Davadray trees are the ascetics. The wind blowing from the island is the criticism by the ascetics of the same school. (1)
ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्
15 CHAPTER-11 : THE DAVADRAV
(61) Snnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org