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उपसंहार
र ज्ञाताधर्म कथांग का यह ग्यारहवाँ अध्ययन भी कथा नहीं एक प्राकृतिक उदाहरण है जिसके डा
माध्यम से सहिष्णुता और समता के महत्त्व को समझाया है। समता सहन करने की क्षमता पर ड 15 निर्भर करती है और समता के बिना आत्मा का कालुष्य नहीं मिटता या कर्मों का क्षय नहीं होता। दी 15 अतः सहिष्णुता का साधना में महत्त्वपूर्ण स्थान है। देश (आंशिक) आराधक, सर्व आराधक, देश द र विराधक, सर्व विराधक इन चार स्तरों के साथ सहनशीलता को और भी स्पष्ट कर दिया है।
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CONCLUSION
5 This eleventh chapter of Jnata Dharma Katha is also not a story but an a 15 example from nature which has been used to explain the importance of a 5 tolerance and equanimity. Equanimity depends on the capacity to tolerate
and without equanimity the dirt within the soul cannot be cleansed or <
Karmas cannot be shed. Thus tolerance plays a very important role B spiritual endeavour. The degree of tolerance has also been spelled out by 15 dividing it into four levels--partial aspirer, absolute aspirer, partial decliner,
and absolute decliner.
उपनय गाथा
जह दावद्दीवतरुणो एवं साहू जहेह दीविच्चा। वाया तह समणाइयसपक्खवयणाई दुसहाई॥१॥ जह सामुद्दयवाया तहऽण्णतित्थाइ कडुयवयणाई। कुसुमाइसंपया जह सिवमग्गाराहणा तह उ॥२॥ जह कुसुमाइविणासो सिवमग्गविराहणा तहा नेया। जह दीववायुजोगे बहु इड्ढ ईसि य अणिड्ढ ॥३॥ तह साहम्मियवयणाण सहणमाराहणा भवे बहुया। इयराणमसहणे पुण सिवमग्गविराहणा थोवा ॥४॥ जह जलहिवायजोगे थेविड्ढ बहुयरा अणिड्ढओ। तह परपक्खक्खमणे आराहणमीपि बहु इयरं ॥५॥
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JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA
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