________________
ग्यारहवाँ अध्ययन : दावद्रव
( ५९ )
सूत्र ११ : “ जब द्वीप की ओर तथा समुद्र की ओर सभी प्रकार की वायु चलती है तब सभी दावद्रव वृक्ष फलों-फूलों से शोभित रहते हैं।
11. “Long-lived Shramans! When all types of winds blow in all directions all the Davadrav trees remain healthy and loaded with flowers and fruits. सर्वाराधक
सूत्र १२ : एवामेव समणाउसो ! जे अम्हं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीण बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं अन्नउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्मं सहइ, एस णं मए पुरिसे सव्वाराहए पण्णत्ते समणाउसो !
एवं खलु गोयमा ! जीवा आराहगा वा विराहगा वा भवति ।
सूत्र १२ : “हे आयुष्मान् श्रमणो ! उसी प्रकार जो साधु-साध्वी दीक्षा लेने के उपरान्त साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका व अन्यतीर्थिकों आदि सभी के दुर्वचनों को सहन करता है उस पुरुष को मैने सर्वाधक कहा है।
“गौतम ! इस प्रकार जीव आराधक अथवा विराधक होते हैं । "
ABSOLUTE ASPIRERS
12. “Similarly, Long-lived Shramans! those of our ascetics who, after getting initiated, can tolerate any criticism by anyone I call absolute aspirers. Gautam! This is how a being becomes an aspirer or a decliner."
सूत्र १३ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं एक्कारसमस्स णायज्झयणस्स अयम पण्णत्ते, त्ति बेमि ।
सूत्र १३ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने ग्यारहवें ज्ञात अध्ययन का यही अर्थ कहा है। ऐसा ही मैंने सुना है, ऐसा ही मैं कहता हूँ ।
13. Jambu! This is the text and the meaning of the eleventh chapter of the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard and so I confirm.
॥ एक्कारसमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ ग्यारहवाँ अध्ययन समाप्त ॥
|| END OF THE ELEVENTH CHAPTER ||
CHAPTER - 11 : THE DAVADRAV
যট
फ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
( 59 )
www.jainelibrary.org