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क चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र
(११७ ) डा र 10. When Tetaliputra saw Pottila as a bride he sat on a platform with her ट
and performed the marriage rituals by anointing himself with water poured
from gold and silver urns and putting offerings into the sacred fire. After the S 2 marriage ceremony he liberally offered food and gifts to the guests from the Sil र brides side and bade them farewell. (detailsas para 8) हे सूत्र ११ : तए णं से तेयलिपुत्ते, पोट्टिलाए भारियाए अणुरत्ते अविरत्ते उरालाइं जावडी 5 विहरइ। र सूत्र ११ : तेतलिपुत्र अपनी भार्या पोट्टिला के प्रति अनुरक्त और आसक्त हो मानवोचित भोग टा 5 भोगता हुआ जीवन बिताने लगा।
11. Tetaliputra then commenced his married life with Pottila, showering 3 5 all love and care on her and enjoying all mundane pleasures with her र सूत्र १२ : तए णं से कणगरहे राया रज्जे य रढे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य टी र अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, पुत्ते वियंगेइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ द है छिंदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठाए छिंदइ, एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्ठए वि कन्नसक्कुलीए विड 5 नासापुडाई फालेइ, अंगमंगाई वियंगेइ। र सूत्र १२ : राजा कनकरथ अपने राज्य, राष्ट्र, सेना, वाहन, कोष, कोठार, अन्तःपुर आदि में ट्र 5 अत्यन्त आसक्त, लोलुप और लालसामय था। इस कारण वह अपने पुत्रों को विकलांग कर देता ट 5 था। किसी के हाथ की अंगुलियाँ तो किसी के हाथ का अंगूठा, किसी के पैर की अंगुलियाँ तोड र किसी के पैर का अंगूठा और किसी के कान की झिल्ली तो किसी की नाक कटवा देता था। इस ट 5 प्रकार उसने अपने सभी पुत्रों को विकलांग कर दिया था। - 12. King Kanak-rath was excessively possessive, covetous, and rapacious ट 5 about his kingdom, state, army, conveyance, treasury, store, harem, etc.; so di
much so that he made it a habit to disfigure his sons (a disfigured person 2 being traditionally considered unfit to be a king). He got their fingers or toes
amputated, or cut out ear-lobes, or disfigured the nose. Thus, one way or the
other he had disfigured all his sons. र रानी की योजना र सूत्र १३ : तए णं तीसे पउमावईए देवीए अन्नया पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवेडा र अज्झथिए समुप्पज्जित्था-“एवं खलु कणगरहे राया रज्जे य जाव पुत्ते वियंगेइ जाव अंगमंगाइं टा र वियंगेइ, तं जइ अहं दारयं पयायामि, सेयं खलु ममं तं दारगं कणगरहस्स रहस्सियं चेवड र CHAPTER-14 : TETALIPUTRA
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