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________________ GOUTTMur u र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ( ११३ ) ड 15 सूत्र ३ : तेतलीपुर में एक स्वर्णकार था जिसका नाम मूषिकारदारक था। वह बड़ा धनवान र और सामर्थ्यवान था। स्वर्णकार की पत्नी का नाम भद्रा था। भद्रा की कोख से जन्मी स्वर्णकार की 5 पुत्री का नाम पोट्टिला था। रूप, यौवन, लावण्य और देहयष्टि में वह श्रेष्ठ थी। 12 3. In Tetalipur lived a goldsmith named Mushikardarak. He was very 5 wealthy and resourceful. The name of his wife was Bhadra. The couple had a 15daughter named Pottila. She was extremely beautiful, youthful, and 2 charming and had a perfect figure. 15 सूत्र ४ : तए णं पोट्टिला दारिया अन्नया कयाइ ण्हाया सव्वालंकारविभूसिया चेडिया- दा र चक्कवाल-संपरिवुडा उप्पिं पासायवरगया आगासतलगंसि कणगमएणं तिंदूसएणं कीलमाणी में 5 कीलमाणी विहरइ। र इमं च णं तेयलिपुत्ते अमच्चे पहाए आसखंधवरगए महया भडचडगरआसवाहणियाएट 5 णिज्जायमाणे कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ। र सूत्र ४ : एक बार पोट्टिला स्नानादि कर, वस्त्राभूषण पहनकर, दासी-वृन्द से घिरी भवन की स 15 छत पर सोने की गेंद से खेल रही थी। । तभी अमात्य तेतलिपुत्र श्रेष्ठ अश्व पर सवार हो अनेक अंगरक्षकों के साथ घुड़सवारी को र निकला। वह मूषिकारदारक स्वर्णकार के घर के पास से गुजरा। 5 4. One day, after taking her bath and getting dressed, Pottila was playing with a golden ball with her maid servants. Just then, minister Tetaliputra set out for a ride on the back of a graceful 5 horse accompanied by his bodyguards. He passed along the house of the 15 goldsmith. तेतलिपुत्र का प्रस्ताव र सूत्र ५ : तए णं से तेयलिपुत्ते मूसियारदारगगिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे वीईवयमाणे हे पोट्टिलं दारियं उप्पिं पासायवरगयं आगासतलगंसि कणगतिंदूसएणं कीलमाणिं पासइ, पासित्ता र पोट्टिलाए दारियाए रूवे य जोव्वणे व लावण्णे य अझोववन्ने कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता दी 15 एवं वयासी-“एस णं देवाणुप्पिया ! कस्स दारिया किंनामधेज्जा वा ?" 15 तए णं कोडुंबियपुरिसे तेयलिपुत्तं एवं वयासी-“एस णं सामी ! कलायस्स मूसियारदारयस्स र धूआ, भद्दाए अत्तया पोट्टिला नामं दारिया रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा र उक्किट्ठ-सरीरा।" ULLLL 15 CHAPTER-14 : TETALIPUTRA (113) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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