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JUL ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
सूत्र ४० : उस देवी ने फिर अपने अवधिज्ञान से जिनंरक्षित के मन में झांक कर देखा । वहाँ कुछ चंचलता देखकर वह बोली - " मैं जिनपालित के लिए तथा जिनपालित मेरे लिए सदा ही अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और खेददायक रहे । परन्तु मैं जिनरक्षित के लिए और वह मेरे लिए सदा ही इष्ट, कान्त, प्रिय आदि रहे हैं । हे जिनरक्षित ! यदि मेरे रोने, क्रन्दन, शोक, अनुताप और विलाप करने पर जिनपालित ध्यान नहीं देता तो क्या तुम भी ध्यान नहीं दोगे ?"
फज्ज्ज्ज्
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40. The evil goddess then peeped into the mind of Jinarakshit through her Avadhi Jnana. When she saw some weakness there she at once tried to exploit it, “Indeed, I and Jinapalit had no liking, desire, or love for each other; in fact we were repulsive and painful to each other. But Jinarakshit and I always cared, liked, and loved each other. Darling Jinarakshit! It hardly matters if Jinapalit does not care for my pain, sorrow, crying, weeping, and wailing but would you also not care for me?"
(In other words -)
सूत्र ४१ : तए णं
सा पवररयणदीवस्स देवया ओहिणा उ जिनरक्खियस्स मणं । नाऊण वधनिमित्तं उवरि मागंदियदारयाणं दोन्हं पि ॥ १ ॥
सूत्र ४१ : रत्नद्वीप की देवी ने अवधिज्ञान द्वारा जिनरक्षित का मन ( चंचल हुआ) भाँप कर अपने मन में दोनों माकन्दीपुत्रों का वध करने की ठान ली ॥ १ ॥
41. Recognizing the weakness of Jinarakshit through her Avadhi Jnana the evil goddess of Ratnadveep decided to kill both the sons of Makandi. (1)
सूत्र ४२ : दोसकलिया सलीलयं, णाणाविह - चुण्णवासमीसियं दिव्वं ।
घाण-मण- णिव्वुइकरं सव्वोउयसुरभिकुसुमवुद्धिं पहुंचमाणी ॥२॥
सूत्र ४२ : मन में द्वेष से भरी उस देवी ने लीला करते हुए तरह-तरह के सुगंधित चूर्ण सहित नाक और मन को तृप्त करने वाले, दिव्य, सर्व ऋतु में खिलने वाले सुगन्धित फूलों की वृष्टि की ॥२॥
42. Filled with aversion, the evil goddess playfully sprinkled a variety of perfumed powders along with a shower of all season fragrant divine flowers that were pleasing to the senses and mind. (2)
सूत्र ४३ : णाणामणि - कणग-रयण- घंटिय- खिखिणि णेउर- मेहल-भूसणरवेणं । दिसाओ विदिसाओ पूरयंती वयणमिणं बेति सा सकलुसा ।। ३ ।।
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
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