________________
( २७४ )
THE MESSAGE
No matter how much pain one has to tolerate while doing penance, if it becomes contaminated by ambition it does not lead to Moksha, this is the same as the penance done by the being that became Draupadi during her birth as Sukumalika. (1)
Another message is-The donation of food even to a deserving recepient bears evil fruits if it is contaminated or is given with bad intentions. This is the same as the donation of bitter gourd by the being that became Draupadi during her birth as Nagshri Brahmani. (2)
परिशिष्ट
कांपिल्य (कंपिला) तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ का जन्म स्थान । तीर्थकल्प के अनुसार यह पांचाल जनपद में गंगा के किनारे बताया गया है। अठारहवीं शताब्दी के जैन यात्रियों के वर्णन के अनुसार यह नगरी अयोध्या के पश्चिम दिशा में है। इन वर्णनोंके अनुसार फर्रुखाबाद जिले के कायमगंज से उत्तर-पश्चिम में छह मील दूर यह स्थान लगता है। तीर्थकल्प में कांपिल्य के निकट पिटियारी ग्राम का उल्लेख है । यह वर्तमान का पटियारी ग्राम लगता है जो कंपिला से १८ - १९ मील उत्तर-पश्चिम में है।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
पांडु मथुरा - पुराने समय में मदुरा में पाण्ड्य वंश का राज्य था । इससे यह अनुमान होता है कि प्राचीन पांडु-मथुरा आज की मदुरा है। इस कथा में भी कृष्ण द्वारा पाण्डवों को दक्षिण समुद्र तट पर भेजने की बात कही है। इससे भी यह अनुमान पुष्ट होता है।
हत्थकप्प - इस कथा के वर्णन के अनुसार यह स्थान शत्रुंजय के आसपास होने का अनुमान लगता है। वर्तमान में काठियावाड में तलाजा के निकट हाथप नाम का गाँव है। यह शत्रुंजय से दूर नहीं है । यही हथ्थकप्प रहा होगा । गुप्तवंश के धरसेन प्रथम वल्लभी दानपत्र हस्तवप्र क्षेत्र का उल्लेख है। विद्वानों के मत में यह हथ्थकप्प ही है। सत्रहवीं शताब्दी के गद्य पांडवचरित्र में देवविजय जी के अनुसार हस्तिकल्प से रैवतक की दूरी बारह योजन बताई है। यह भी इसी अनुमान की पुष्टि करता है।
उज्जयंत पर्वत- रैवतक पर्वत या गिरनार ।
(274)
हस्तिनापुर - पौराणिक दृष्टि से यह नगर भी वाराणसी तथा अयोध्या की भाँति एक महत्वपूर्ण नगर रहा है। यह कुरुजांगल जनपद की राजधानी थी । महाभारत के अनुसार सुहोत्र के पुत्र राजा हस्ती ने इसे बसाया था। विविध तीर्थकल्प के अनुसार ऋषभदेव के पौत्र तथा कुरु के पुत्र हस्ती ने यह नगर बसाया था । वसुदेवहिण्डी में इसका नाम ब्रह्मस्थली लिखा | वर्तमान में मेरठ से २२ मील उत्तर-पश्चिम तथा दिल्ली से छप्पन मील दक्षिण-पूर्व में यह नगर विद्यमान है।
निदान के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन अन्तकृद्दशा महिमा में तथा दशाश्रुतस्कंध सूत्र में देखें ।
Jain Education International
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org