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मज्ज र ( १३४ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 and greeted him with joined palms and sweet and courteous words. Many of 5 them joined him moving at his front, back or flanks. र सूत्र ४0 : तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव कणगज्झए तेणेव उवागच्छइ। तए णं कणगज्झए । 5 तेयलिपुत्तं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाइ, नो परियाणाइ, नो अब्भुढेइ, अणाढायमाणे र अपरियाणमाणे अणब्भुट्टायमाणे परम्मुहे संचिट्ठइ। 5 तए णं तेयलिपुत्ते अमच्चे कणगज्झयस्स रण्णो अंजलिं करेइ। तओ य णं कणगज्झए राया ड र अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे अणब्भुट्टेमाणे तुसिणीए परम्मुहे संचिट्टइ। 5 तए णं तेयलिपुत्ते कणगज्झयं विप्परिणयं जाणित्ता भीए जाव संजायभए एवं वयासी-“रुटे डा रणं मम कणगज्झए राया, हीणे णं मम कणगज्झए राया, अवज्झाए णं कणगज्झए राया। तं ण 5 णज्जइ णं मम केणइ कु-मारेण मारेहि" त्ति कट्ट भीए तत्थे य जाव सणियं सणियं पच्चोसक्केइ, ८ र पच्चोसक्कित्ता तमेव आसखंधं दुरूहेइ, दुरूहित्ता तेतलिपुरं मझमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव 5 5 पहारेत्थ गमणाए। र सूत्र ४0 : तेतलिपुत्र अमात्य कनकध्वज राजा के निकट पहुँचा। राजा ने उन्हें आते देखा ए किन्तु उनका आदर नहीं किया, हितैषी जान खड़ा भी नहीं हुआ अपितु मुँह फेरकर बैठा रहा। २ तेतलिपुत्र ने जब राजा को हाथ जोड़े तब भी वह उनका अनादर करते हुए विमुख होकर बैठा
रहा। रे राजा को अपने विरुद्ध हुआ जानकर तेतलिपुत्र के मन में बहुत भय उत्पन्न हुआ। उन्होंने मन रही मन कहा-"राजा कनकध्वज मुझसे रूठ गए हैं, मेरे प्रति हीन हो गए हैं और मेरे विषय में 5 बुरा सोचने लगे हैं। न जाने वे मुझे किस बुरी मौत मार देंगे।" इन विचारों से उनके मन में डरट 5 और त्रास उत्पन्न हुआ और वे घबराकर धीरे-धीरे वहाँ से सरक गए। अपने अश्व पर सवार हो दा 2 नगर के बीच होते हुए अपने घर की दिशा में चले। 5 40. Tetaliputra came to king Kanak-dhvaj. The king saw him coming but > he neither greeted him with usual respect nor stood up to honour him; he in C > fact turned away from him. When Tetaliputra joined his palms and greeted 2 the king he did not respond, conveying his feeling of apathy and neglect for
the minister. 15 Tetaliputra observed this cold treatment meted out by the king and got
fearful. He thought, "King Kanak-dhvaj is annoyed with me. He has gones against me and started thinking bad about me. In this state of mind he may deal some drastic punishment to me." These thoughts added to his fear and apprehension and he silently fled from there. He rode his horse and through the town started for his home.
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA RAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnn
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