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फज्ज ( ७४ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
जिमियभुत्तुत्तराए णं जाव परमसुइभूए तंसि उदयरयणे जायविम्हए ते बहवे राईसर जाव ( एवं वयासी- 'अहो णं देवाणुप्पिया ! इमे उदयरयणे अच्छे जाव सव्विंदियगाय- पल्हायणिज्जे ।' तए णं बहवे राईसर जाव एवं वयासी - 'तहेव णं सामी ! जं णं तुब्भे वयह, जाव एवं चेव' पल्हायणिज्जे ।'
सूत्र १८ : जलगृह के कर्मचारी ने सुबुद्धि की बात स्वीकार की और वह श्रेष्ठ जल ले जाकर राजा जितशत्रु को भोजन के समय परोसा ।
तब जितशत्रु राजा ने श्रेष्ठ स्वादिष्ट भोजन करने के बाद हाथ-मुँह धोकर वह पानी पीया । । पानी का स्वाद चखकर उसे आश्चर्य हुआ। उसने अपने निकट रहे राजा, राजकुमार आदि के सामने कहा - "हे देवानुप्रियो ! यह श्रेष्ठ जल स्वच्छ है । शरीर व इन्द्रियों को आल्हाददायक है । " ( पूर्व सू. १६ के समान )
उपस्थित लोगों ने राजा की बात का एक स्वर में अनुमोदन किया- “हाँ स्वामी, ऐसा ही है । "
KING'S SURPRISE
18. The water-shed manager accepted Subuddhi's instructions and accordingly carried away the pitchers filled with water. When King Jitshatru arrived for his meals this same water was served to him.
After his meals the king washed his hands and mouth and drank that water. He was surprised at the heavenly taste of that water. He conveyed to the guests around him, "Beloved of gods! This water is of the best quality. It is satisfying and pleasant to the body and the senses. (as para 16).
All those present unanimously attested the kings statement, "What you say is true Sire!”
सूत्र १९ : तए णं जियसत्तू राया पाणियघरियं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'एस गं तुभे देवाणुप्पिया ! उदयरयणे कओ आसाइए ?
तए णं पाणियघरिए जियसत्तुं एवं वयासी - 'एस णं सामी ! मए उदयरयणे सुबुद्धिस्स अंतियाओ आसाइए।'
तणं जियसत्तू राया सुबुद्धिं अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'अहो णं सुबुद्धी ! केणं कारणं अहं तव अणि अकंते अप्पिए अमणुण्णे अमणामे, जेण तुमं मम कल्ला कल्लि भोयणवेलाए इमं उदयरयणं न उवट्टवेसि ?
तए णं देवाणुप्पिया ! उदयरयणे कओ उवलद्धे ?'
तणं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी - 'एस णं सामी ! से फरिहोदए । '
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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