________________
卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्
उपसंहार
___ज्ञाताधर्म कथा की इस तेरहवीं कथा में सुविधाओं में आसक्ति के परिणाम स्वरूप अधःपतन । 15 और आत्मालोचना द्वारा संयम की पुनर्स्थापना को एक सहज बोधगम्य उदाहरण द्वारा प्रस्तुत किया द 5 है। राग व मोह हर स्थिति में पथ भ्रष्ट करता है चाहे उससे प्रेरित क्रियाकलाप जनोपयोगी ही क्यों ड र न हो। अतः जन सेवा के कार्य स्वानुकम्पा से नहीं परानुकम्पा से प्रेरित होने चाहिए। आत्मालोचना 2 5 वह प्रहरी है जो पग-पग पर ऐसे सूक्ष्म अटकाव से रोकता है और सम्यक् मार्ग को अपनाने को दे 15 प्रेरित करता है। सुसाधु समागम इस आत्मालोचना को पुष्ट करता है।
CONCLUSION
This thirteenth story of the Jnata Dharma Katha presents the downfall 12 caused by attachment to comforts and the regaining of self discipline through
critical self-review. This is done with the help of a simple and easy to grasp
example. Attachment and fondness always lead one astray from the spiritual 5 path whether or not the inspired activity is humanitarian. And so. any द
humanitarian activity should be inspired by the desire to benefit others and not oneself. Self criticism acts as a guard that clears such subtle hurdles at every step and helps maintain the right direction on the spiritual path. Interaction with accomplished ascetics helps this practice of self criticism.
| उपनय गाथा । सम्पन्नगुणो वि जिओ सुसाहुसंसग्गिवजिओ पायं। पावइ गुणपरिहाणिं दद्दरजीवो व्व मणियारो॥१॥ तित्थयर वंदणत्थं चलिओ भावेण पावए सग्गं।
जह ददुर देवेणं, पत्तं वेमाणियसुरत्तं ॥२॥ र गुण सम्पन्न होने पर भी कभी-कभी सुसाधु के सम्पर्क का अभाव होने पर आत्मा गुणों की हानि टी 15 को प्राप्त होता है जैसे नन्द मणिकार का जीव मेंढक के रूप में उत्पन्न हुआ॥१॥
र तीर्थंकर वन्दना हेतु प्रस्थान करने वाला प्राणी भक्ति भावना के कारण स्वर्ग प्राप्त करता है ट 15 (चाहे वह दर्शन कर पावे या नहीं) जैसे मेंढक मात्र भावना प्रबल होने के कारण वैमानिक देव भव द
र प्राप्त कर सका॥२॥
UUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज
CHAPTER-13 : THE FROG
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org