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र ( १८६ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 5 दुरूहावित्ता सेयापीयएहिं कलसेहिं मज्जावेइ, मज्जावित्ता होमं करावेइ, करावित्ता सागरं दारयड र सूमालियाए दारियाए पाणिं गेण्हावेइ।
5 सूत्र ४१ : सागरदत्त ने विपुल खाद्य सामग्री तैयार करवाई और जिनदत्त तथा अन्य अतिथियों 15 को भोजन करवाकर उनका सत्कार सन्मान किया। सागर तथा सुकुमालिका को पाट पर बिठाया
2 और चांदी-सोने के (श्वेत-पीत) कलशों में भरे पानी से स्नान करवाया। तत्पश्चात् होम करवाकर टी 5 दोनों का विधिवत पाणि-ग्रहण करवाया।
41. Sagardatt also arranged for a feast and offered food to Jindatt and 2 other guests. After that he honored them with gifts. He made Sagar and 5 Sukumalika sit on a platform and performed the marriage rituals by
anointing them with water poured from gold and silver urns and putting
offerings into the sacred fire. र कर्कश स्पर्श हे सूत्र ४२ : तए णं सागरदारए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं पाणिफासं पडिसंवेदेइ सेडी र जहानामए-असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा, इत्तो अणिट्टतराए चेव पाणिफासं पडिसंवेदेइ। तएटी 15 णं से सागरए अकामए अवसव्वसे तं मुहुत्तमित्तं संचिट्ठइ। र सूत्र ४२ : उस समय सागर को सुकुमालिका के हाथ का स्पर्श ऐसा लगा जैसे कोई तलवार होटे 5 या जलते अंगारे मिली राख हो। इतना ही नहीं बल्कि इससे भी अधिक अनिष्टतर, अप्रिय लगादी र वह स्पर्श। किन्तु विवश होकर सागर अनिच्छापूर्वक वह स्पर्श सहन करता कुछ देर बैठा रहा। ड 5 REVOLTING TOUCH
42. During that time Sagar felt that the touch of Sukumalika's hand was like that of a sword's edge or ash full of embers. In fact it was much more 5 painful than that. But he was forced to sit out the ceremony. र सूत्र ४३ : तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे सागरस्स दारगस्स अम्मापियरो मित्तणाइ विपुलेणंड र असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ जाव संमाणेत्ता पडिविसज्जेइ। र तए णं सागरए दारए सूमालियाए सद्धिं जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता र सूमालियाए दारियाए सद्धिं तलिगसि निवज्जइ। र सूत्र ४३ : तत्पश्चात् सार्थवाह सागरदत्त ने सागर के माता-पिता तथा अतिथियों को भरपूरा र भोजन करा कर पुष्प, वस्त्रादि से सम्मानित कर विदा किया।
सागर सुकुमालिका के साथ शयनागार में आया और दोनों शय्या पर लेट गये। ___43. Merchant Sagardatt saw the marriage party off after honouring theme
with gifts of flowers, apparels etc. 6 (186)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA
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