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सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
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सूत्र ३९. यह सुनकर जिनदत्त अपने घर आया और अपने पुत्र सागर को बुलाकर कहा - "हे पुत्र ! सार्थवाह सागरदत्त ने मुझसे कहा कि उसकी लड़की उसे इतनी प्रिय है कि तुम उसके घर जंवाई बनो तभी वह अपनी लड़की का विवाह तुम से करेगा । " तब सागरदत्त मौन रहकर स्वीकृति दे दी।
FIRST MARRIAGE
39. Jindatt returned home, called his son Sagar and said, "Son! Merchant Sagardatt says that he loves her daughter so much that he can marry her to you only if you agree to live with them." Sagar remained silent expressing his consent.
सूत्र ४० : तए णं जिणदत्ते सत्थवाहे अन्नया कयाई सोहणंसि तिहि करण - नक्खत्त-मुहुत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता मित्तनाइ-नियग-सयणसंबधिपरियणं आमंतेइ, जाव संमाणित्ता सागरं दारयं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करित्ता पुरिससहस्सावाहिणिं सीयं दुरूहावेइ, दुरूहावित्ता मित्त-णाइ जाव संपरिवुडे सव्विड्ढीए साओ गिहाओ निग्गच्छ, निग्गच्छित्ता चंपानयरिं मज्झमज्झेणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सागरगं दारगं सागरदत्तस्प सत्थवाहस्स उवणेइ।
सूत्र ४० : सागर की स्वीकृति मिलने पर शुभ तिथि, करण, नक्षत्र तथा मुहूर्त में जिनदत्त ने विपुल भोजन सामग्री बनवाई और मित्रों व स्वजनों को निमंत्रण देकर बुलाया। भोजन के पश्चात् उन्हें सम्मानित किया। सागर को स्नानादि करवा वस्त्राभूषणों से अलंकृत किया और हज़ार पुरुषों से उठाई जाने वाली पालकी पर चढ़ाकर मित्रों स्वजनों के साथ पूरे वैभव से घर से निकला । चम्पानगरी के बीच मार्ग से होता हुआ वह सागरदत्त के घर पहुँचा । सागर को पालकी से नीचे उतारकर सार्थवाह सागरदत्त के पास ले गया।
40. When Sagar agreed, finding an auspicious date and at an auspicious moment Jindatt made arrangements for a great feast, got delicious and savory dishes prepared and invited all his relatives and friends. After the feast he honoured them with gifts. He, then, got his son, Sagar, ready and dressed and put him in a Purisasahass palanquin. Displaying all his wealth and glory and accompanied by all his friends and relatives he came out of the house. Passing through the streets of Champa the marriage procession arrived at the house of Sagardatt. He got Sagar out of the palanquin and took him to Sagardatt.
सूत्र ४१ : तए णं सागरदत्ते सत्थवाहे विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावे, उवक्खडावित्ता जाव संमाणेत्ता सागरगं दारगं सूमालियाए दारियाए सद्धिं पट्टयं दुरूहावेइ,
CHAPTER-16: AMARKANKA
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