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सूत्र १ : 'जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सोलसमस्स णायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, सत्तरसमस्स णं णायज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? '
सत्तरसमं अज्झयणं : आइण्णे सत्रहवाँ अध्ययन आकीर्ण
SEVENTEENTH CHAPTER : AKIRNA - THE HORSES
सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया- “ भन्ते ! जब श्रमण भगवान महावीर ने सोलहवें ज्ञात अध्ययन का पूर्वोक्त अर्थ बताया है तो सत्रहवें ज्ञात अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?”
1. Jambu Swami inquired, “Bhante! What is the meaning of the seventeenth chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?"
सूत्र २ : ' एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे णामं नयरे होत्था, वण्णओ । तत्थ णं कणगकेऊ णामं राया होत्था, वण्णओ ।
सूत्र २ : सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया- “ जम्बू ! काल के उस भाग में हस्तिशीर्ष नाम का नगर था। उस नगर में कनककेतु नाम का राजा था । ( विस्तृत वर्णन औपपातिकसूत्र के नगर वर्णन अनुसार)
2. Sudharma Swami narrated -Jambu! During that period of time there was a city named Hastisheersh. The name of the ruler of this city was King Kanak-ketu. (details as in Aupapatik Sutra)
सूत्र ३ : तत्थ णं हत्थिसीसे णयरे बहवे संजुत्ता - णावा - वाणियगा परिवसंति, अड्डा जाव बहुजणस्स अपरिभूया यावि होत्था । तए णं तेसिं संजत्ता - णावा - वाणियगाणं अन्ना का ग सहियाणं जहा अरहण्णओ जाव लवणसमुदं अणेगाई जोयणसयाइं ओगाढा यावि होत्था ।
सूत्र ३ : हस्तिशीर्ष नगर में अनेक सांयात्रिक (साथ-साथ यात्रा करने वाले) नौकावणिक् रहते थे। वे धनाढ्य और समर्थ थे। एक बार वे व्यापारी परस्पर मिले और समुद्रयात्रा पर जाने का निर्णय किया । यथासमय शुभ मुहुर्त में ( यथाविधि ) यात्रारम्भ कर वे सांयात्रिक नौकावणिक् लवणसमुद्र में सैकड़ों योजन पहुँच गये। (विस्तृत विवरण अर्हन्नक की कथा के समान -अ : ८ )
3. In Hastisheersh city there lived many wealthy and reputed Sanyantriks (merchants who went to other countries for trade) and Nauvaniks (merchants who carried their merchandise in boats). One day all these merchants met together and decided to go on a sea voyage. At an auspicious
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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