________________
M
SITTUTTUTVUVV
rusi र ( २९६ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा र तिक्त, कटु मधुर आदि स्वादों में तथा खाद्य-पेय आदि से जो प्राणी आसक्त नहीं होते वे दी र वशार्तमरण को प्राप्त नहीं होते॥१४॥ 115 The beings who are not allured by savoury preparations, solid, semi-solid, P and liquid, having bitter, hot, pungent, sour, and sweet flavours, etc. do not c 2 embrace Vashartmaran. (14)
उउ-भयमाणसुहेसु य, सविभव-हियय-निव्वुइकरेसु।
फासेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए॥१५॥ . मन को आनन्द देने वाले विभिन्न प्रकार के स्पर्शों में जो प्राणी आसक्त नहीं होते वे वशार्तमरण डा र को प्राप्त नहीं होते॥१५॥
The beings who are not allured by a variety of objects pleasing to the sense of touch do not embrace Vashartmaran. (15) 5 कर्त्तव्य-निर्देश
सद्देसु य भद्दग-पावएसु सोयविसयं उवगएसु।
तुट्टेण व रुद्रेण व समणेण सया ण होअव्वं ॥१६॥ ___ श्रमण को शुभ या मनोज्ञ ध्वनियाँ सुनकर कभी तुष्ट नहीं होना चाहिए और अशुभ या दी र अमनोज्ञ ध्वनियाँ सुनकर कभी रुष्ट नहीं होना चाहिए॥१६॥ 2 DIRECTIONS
A Shraman should never be contented by pleasant sounds and disturbed by unpleasant ones. (16)
रूवेसु य भद्दग-पावएसु चक्खुविसयं उवगएसु।
तुडेण व रुद्रेण व, समणेण सया ण होअव्वं ॥१७॥ श्रमण को आँखों के सामने आये हुए प्रिय अथवा अप्रिय दृश्य देखकर कभी तुष्ट या रुष्ट नहीं दी 5 होना चाहिए॥१७॥
A Shraman should never be contented by pleasant views and disturbed by 5 unpleasant ones. (17)
गंधेसु य भद्दग-पावएसु घाण-विसयमुवगएसु।
तुट्टेण व रुद्रेण व, समणेण सया ण होअव्वं ॥१८॥ श्रमण को घ्राणेन्द्रिय के समक्ष आये प्रिय अथवा अप्रिय गंध सूंघने पर कभी तुष्ट या रुष्ट नहीं डा र होना चाहिए॥१८॥ 15 (296)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA 21
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org