________________
பெபபப
DDDDDDDDजान P) सत्रहवां अध्ययन : आकीर्ण
( २९७ ) डा A Shraman should never be contented by pleasant smells and disturbed by unpleasant ones. (18)
रसेसु य भद्दय-पावएसु जिब्भविसयं उवगएसु।
तुट्टेण व रुद्रेण व, समणेण सया न होअव्वं ॥१९॥ 15 श्रमण को प्रिय अथवा अप्रिय स्वाद प्राप्त होने पर कभी जिह्वेन्द्रिय के रसों में तुष्ट या रुष्ट दी
२ नहीं होना चाहिए॥१९॥ B A Shraman should never be contented by pleasant tastes and disturbed 15 by unpleasant ones. (19)
फासेसु य भद्दय-पावएसु कायविसयमुवगएसु।
तुह्रण व रुद्रुण व, समणेण सया न होअव्वं ॥२०॥ श्रमण को प्रिय अथवा अप्रिय स्पर्श प्राप्त होने पर कभी शरीर सम्बन्धी स्पर्श में तुष्ट या रुष्ट टा 15 नहीं होना चाहिए॥२०॥
A Shraman should never be contented by a pleasant touch and disturbed 5 by an unpleasant one. (20) 12 सूत्र ३१ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तरसमस 15 णायज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते त्ति बेमि। र सूत्र ३१ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने सत्रहवें ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ कहा है। र जैसा मैंने सुना है वैसा ही मैं कहता हूँ। 5 31. Jambu! This is the text and the meaning of the seventeenth chapter of S1
the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I confirm.
॥ सत्तरसमं अज्झयणं समत्तं ॥
॥ सत्तरहवाँ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF THE SEVENTEENTH CHAPTER II
B CHAPTER-17 : THE HORSES
(297) टा FAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnn
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org