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U.APUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUजान रितेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-द१रज्ञात
___ ( १०५ ) 5 सूत्र ३१ : कुचले जाने से वह मेंढक शक्तिहीन, निर्बल, निर्वीय और पौरुषविहीन हो गया। यह द र समझकर कि अब उसमें जीवन धारण की शक्ति नहीं रही, वह एक ओर चला गया। वहाँ दोनों ।
हाथ जोड़कर तीन बार मस्तक पर फिराकर ललाट पर लगाये और बोला-“अरिहंतों को, भगवन्तों दी 15 को नमस्कार हो (शकेन्द्र स्तुति के समान)। मेरे धर्मगुरु धर्माचार्य, मोक्ष-प्राप्ति के लिए अभिमुख डा
र श्रमण भगवान महावीर स्वामी को नमस्कार हो। मैंने पहले भी श्रमण भगवान महावीर के पास 15स्थूल अहिंसादि पाँच अणुव्रत स्वीकार किए थे। अब मैं उन्हीं भगवान के निकट (साक्षी भाव से)
सम्पूर्ण अहिंसादि पाँच महाव्रत स्वीकार करता हूँ। जीवन पर्यंत समस्त अशनादि आहार का त्यागी र करता हूँ। जिस शरीर के लिए सदा कामना की कि इसे रोगादि स्पर्श न करें उस इष्ट व कान्त दे 15शरीर का मोह भी अन्तिम साँस तक त्यागता हूँ।"
र 31. On being trampled the frog lost its energy, strength, power, and 2 15 valour. Realizing that the life force was fast ebbing out, it dragged itself to
one side. It joined its front paws, moving them in a circle near its head three
times and touching its forehead it uttered, “I bow and convey my reverence to Pthe Arhats, Bhagavants, . . . . . (the Shakra panegyric). My reverence also to (my preceptor, Shraman Bhagavan Mahavir. Earlier I took the five minor 5 vows before him, and now I take the five great vows in his name, in his
spiritual presence. I resolve to abandon intake of any and all food till the last Pbreath of my life. I also abandon the fondness for the loved and treasured
mundane body of which I always wished that no ailment may touch it." र देवपर्याय में जन्म 5 सूत्र ३२ : तए णं से ददुरे कालमासे कालं किच्चा जाव सोहम्मे कप्पे ददुरवडिंसए ड र विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए उववन्ने। एवं खलु गोयमा ! ददुरेणं सा दिव्या देविड्ढी टा
लद्धा पत्ता जाव अभिसमन्नागया। 5 सूत्र ३२ : उसके बाद यथासमय वह मेंढक मृत्यु को प्राप्त हो सौधर्मकल्प में दर्दुरावतंसक नाम ट 5 के विमान की उपपात सभा में दर्दुर देव के रूप में उत्पन्न हुआ। हे गौतम ! दर्दुर देव ने वह दिव्य ड र देवर्धि लब्धि इस प्रकार पूर्ण रूप से प्राप्त की है। 3 REBIRTH AS GOD 5 32. In due course the frog breathed its last and was reincarnated as SI
Dardur god in the Upapata assembly of the Darduravatansak space vehicle S Bin the Saudharm Kalp (a dimension of gods). Gautam! This is how the 2 5 Dardur god acquired all his divine virtues and powers.
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5 CHAPTER-13 : THE FROG
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