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फुज्ज
सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
( २४७ ) he did exactly as Krishna Vasudev had instructed him to do. Eyes red with anger, he kicked the leg-rest with his left foot, delivered the letter with the tip of his spear and repeated the message of Krishna.
सूत्र १७५ : तए णं से पउमणाभे दारुएणं सारहिणा एवं वृत्ते समाणे आसुरुते तिवलिं भिउडिं निडाले साहड्ड एवं वयासी - णो अप्पणामि णं अहं देवाणुप्पिया ! कण्हस्स वासुदेवस्स दोवई, एस णं अहं सयमेव जुज्झसज्जो निग्गच्छामि, त्ति कट्टु दारुयं सारहिं एवं वयासी- 'केवलं भो ! रायसत्थेसु दूए अवज्झे' त्ति कट्टु असक्कारिय असम्माणिय अवद्दारेणं णिच्छुभावे |
सूत्र १७५ : दूत का कथन सुनकर उत्तर में पद्मनाभ ने क्रोध से लाल हो भृकुटि तान कर ललाट पर तीन सलवटें डालकर कहा - " देवानुप्रिय ! मैं कृष्ण वासुदेव को द्रौपदी वापस नहीं करूँगा। लो, मैं स्वयं युद्ध के लिए तैयार होकर निकलता हूँ।" पद्मनाभ ने पुनः दूत को सम्बोधित किया- “हे दूत ! राजनीति शास्त्र में दूत अवध्य है। इस कारण तुझे छोड़ देता हूँ ।" और उसने दूत को अपमानित तिरस्कृत कर पिछले द्वार से निकाल दिया ।
175. When he heard this message King Padmanaabh too became furious. With a frown and three creases on his forehead he replied, "Beloved of gods! I will not return Draupadi to Krishna. I will prepare for the battle and come out at once.” King Padmanaabh again addressed the emissary, “Messenger! Emissaries enjoy diplomatic immunity. That is why I allow you to go without harm." And he summarily dismissed the emissary and as an insult made him leave from the back door.
सूत्र १७६ : तए णं से दारुए सारही पउमनाभेणं असक्कारिय जाव निच्छूढे समाणे जेणेव कहे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल - परिग्गहियं जाव कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - ' एवं खलु अहं सामी ! तुब्भं वयणेणं जाव णिच्छुभावेइ ।'
सूत्र १७६ : पद्मनाभ राजा द्वारा अपमान करके तिरस्कार पूर्वक निकाले जाने पर सारथि दारुक कृष्ण वासुदेव के पास लौटा और हाथ जोड़कर सारा वृत्तान्त सुना दिया ।
176. Insulted and dismissed summarily by King Padmanaabh, driver Daruk returned to Krishna Vasudev and narrated his experience in detail.
सूत्र १७७ : तए णं से पउमणाभे बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह ।' तयाणंतरं च णं छेयायरिय-उवदेसमइविकप्पणाहिं विगप्पेहिं जाव उवणेइ । तए णं से पउमनाहे सन्नद्ध जाव अभिसेयं (हत्थिरयणं) दुरूहइ, दुरूहित्ता हय-गय जेणेव कण्हे वासुदेवे तणेव पहारेत्थ गमणाए ।
सूत्र १७७ : उधर वासुदेव के दूत को निकाल देने के पश्चात् राजा पद्मनाभ ने अपने सेनापति को बुलाया और कहा - " देवानुप्रिय ! अभिषेक किये हुए श्रेष्ठ हाथी को तैयार करके
CHAPTER - 16 : AMARKANKA
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