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र ( २५०)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ड 15 राय' त्ति कट्ट पउमनाभेणं रन्ना सद्धिं जुज्झामि। रहं दुरूहइ, दुरूहित्ता जेणेव पउमनाभे राया डा र तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेयं गोखीर-हार-धवलं तणसोल्लिय-सिंदुवार-कुंदेंदु-सन्निगाह 5 निययबलस्स हरिसजणणं रिउसेण्ण-विणासकर पंचजण्णं संखं परामुसइ, परामुसित्ता दी र मुहवायपूरियं करेइ। 15 सूत्र १८0 : इस पर कृष्ण वासुदेव ने कहा-“देवानुप्रियो !यदि तुम इस संकल्प के साथ किट 15 ‘आज हम हैं, पद्मनाभ राजा नहीं' युद्ध में जुटे होते तो वह तुम्हें प्रतिहत नहीं कर पाता। अब डा र देखना मैं इस संकल्प के साथ पद्मनाभ से युद्ध करता हूँ-'आज मैं हूँ, पद्मनाभ नहीं।' " और डी र कृष्ण वासुदेव रथ पर आरूढ़ हो राजा पद्मनाभ के निकट पहुंचे। वहाँ उन्होंने गाय के दूध, मोतियों टा 15 के हार, मल्लिका, मालती, सिंदुवार तथा कुन्द के फूल और चन्द्रमा के समान सफेद पाँचजन्य दा 12 शंख, जो उनकी अपनी सेना में हर्ष संचार करता था, तथा रिपु सेना को त्रस्त करने वाला था, डी
र वह शंख हाथ में ले कर फूंका। 15 180. Krishna Vasudev commented. “Beloved of gods! Had you entered the cl
5 battle with the resolve—“Today King Padmanaabh will perish, not us--he ci I would not have defeated you. Now see, I will join the battle with this SI 12 resolve.” Krishna resolved, "Today King Padmanaabh will perish, not me." S
He then boarded his chariot and went near King Padmanaabh. Once there he र blew his Panchajanya conch-shell which was white as cow-milk, the pearl || 5 necklace, Mallika, Malati, Sinduvar, and Kund flowers, and the moon. The di 15 sound of Panchajanya instilled joy in his own army and fear in the foe's army. टा
र सूत्र १८१ : तए णं तस्स पउमनाहस्स तेणं संखसद्देणं बल-तिभाए हए जाव पडिसेहिए। तए SI रणं से कण्हे वासुदेवे धणुं परामुसइ, वेढो, धणुं पूरेइ, पूरित्ता धणुसदं करेइ। तए णं तस्स टा 15 पउमनाभस्स दोच्चे बल-तिभाए धणुसद्देणं हयमहिय जाव पडिसेहिए। तए णं से पउमनाभे राया |
रतिभागबलावसेसे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जं ति कट्ट सिग्घं डा 15 तुरियं जेणेव अमरकंका तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अमरकंकं रायहाणिं अणुपविसइ टा । अणुपविसित्ता दाराइं पिहेइ, पिहित्ता रोहसज्जे चिट्ठइ।
र सूत्र १८१ : उस शंख की प्रचण्ड ध्वनि से पद्मनाभ की सेना का एक तिहाई भाग हतोत्साहित टा 15 व त्रस्त होकर चारों दिशाओं में पलायन कर गया। फिर कृष्ण वासुदेव ने अपना सारंग नामक द
र धनुष हाथ में लिया (धनुष का वर्णन जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार जाने) और उसकी प्रत्यंचा ड र चढ़ाकर टंकार की। इस तीव्र टंकार से पद्मनाभ की सेना का अन्य एक तिहाई भाग तुरन्त टा 15 भयभीत, निर्वीय होकर भाग गया। अब उसकी सेना का केवल एक तिहाई भाग शेष रहा और वह दी र सामर्थ्यहीन, बलहीन, वीर्यहीन और पुरुषार्थ-पराक्रमहीन हो गया। कृष्ण वासुदेव के प्रहार को सहने डा र या उससे बचने में असमर्थ हो जाने से वह शीघ्र ही द्रुतगति से भाग कर अमरकंका नगरी के डी 5 भीतर जा घुसा। राजधानी में प्रवेश कर द्वार बन्द कर नगर सुरक्षा के लिए तैयारी करने लगा। र (250)
| JNATA DHARMA KATHẮNGA SUTRA
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