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________________ र अठाहरवाँ अध्ययन : सुंसुमा ( ३०५ ) डा 5 तए णं तेसिं बहूणं दारगाण य दारियाण य डिंभयाण य डिभियाण य कुमारयाण यद र कुमारियाण य अम्मापियरो जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धण्णं 15 सत्थवाहं बहूहिं खिज्जणाहि य रुंटणाहि य उवलंभणाहि य खिज्जमाणा य रुंटमाणा यद 5 उवलंभेमाणा य धण्णस्स एयमढें णिवेदेति। 5 सूत्र ५ : तब वे बहुत से बच्चे रोते, चिल्लाते, शोक करते, आँसू बहाते और विलाप करते हुए ट 5 अपने-अपने माता-पिता के पास जाकर चिलात की शिकायत करते थे। र बच्चों के माता-पिता धन्य सार्थवाह के पास जाकर खेद भरे वचनों में भरे गले से उलाहना देते ८ 5 हुए अपना दुःख प्रकट करते और रोते-रोते धन्य सार्थवाह से शिकायत करते थे। 2 5. At this the children wept, shrieked, became sad, cried, and went to their parents to report the ill-treatment by Chilat. The parents of these children came to Dhanya merchant and reported to him with regret, complained in choked voice, and expressed their sorrow with S रे tears in their eyes. 5 सूत्र ६ : तए णं धण्णे सत्थवाहे चिलायं दासचेडं एयमटुं भुज्जो भुज्जो णिवारेति, णो चेव द र णं चिलाए दासचेडे उवरमइ। तए णं से चिलाए दासचेडे तेसिं बहूणं दारगाण य दारियाण या र डिंभयाण य डिभियाण य कुमारयाण य कुमारियाण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ जावटी UUUUUUN ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् 5 तालेइ। सूत्र ६ : धन्य सार्थवाह ने इस धृष्टता के लिए चिलात दास पुत्र को बार-बार मना किया । 15 समझाया, पर वह माना नहीं। धन्य सार्थवाह के रोकने पर भी चिलात उन बच्चों को विभिन्न प्रकार ट र से सताता रहा; उनको डाँटता रहा। 6. Dhanya merchant admonished Chilat for all this mischief and told him 155 many a time to behave himself. In spite of all this Chilat continued to torture and mistreat the children. र सूत्र ७ : तए णं ते बहवे दारगा य दारियगा य डिंभगा य डिभिया य कुमारा य कुमारिया । 15 य रोवमाणा य जाव अम्मापिऊणं णिवेदेति। र तए णं ते आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव टा 15 उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बहूहिं खिज्जणाहि य जाव एयमद्वं णिवेदेति। र सूत्र ७ : इस पर बच्चों ने रोते कलपते फिर अपने माता-पिता से चिलात की शिकायत की। टा 5 बच्चों के माता-पिता इस स्थिति से एकदम क्रुद्ध, रुष्ट और कुपित हो गये और प्रचण्ड क्रोध से डा र जलते हुए पुनः धन्य सार्थवाह के पास गये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने खीज भरे वचनों में सारी बात र धन्य सार्थवाह को बताई। UUUUUN C CHAPTER-18 : SUMSUMA ( 305) टा FEAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAALI Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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