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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 तए णं मुणिसुब्बए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी-'नो खलु देवाणुप्पिया ! एवं भूयं डा र वा, भवइ वा, भविस्सइ वा जण्णं अरिहंता वा अरिहंतं पासंति, चक्कवट्टी वा चक्कवटैि पासंति, 5 बलदेवा वा बलदेवं पासंति, वासुदेवा वा वासुदेवं पासंति। तह वि य णं तुमं कण्हस्स र वासुदेवस्स लवणसमुदं मज्जमज्झेण वीइवयमाणस्स सेयापीयाई धयग्गाइं पासिहिसि।' 15 सूत्र १९१ : कपिल वासुदेव ने तीर्थंकर मुनिसुव्रत को यथाविधि वन्दना की और पूछा-“भंते
र मैं जाऊँ और पुरुषोत्तम कृष्ण वासुदेव के दर्शन करूँ?" 15 अरिहंत मुनिसुव्रत ने कहा-“देवानुप्रिय ! ऐसा न हुआ, न होता है, न होगा कि एक तीर्थंकर द । दूसरे तीर्थंकर को देखे, एक चक्रवर्ती दूसरे चक्रवर्ती को देखे, एक बलदेव दूसरे बलदेव को देखे
र और एक वासुदेव दूसरे वासुदेव को देखे। फिर भी तुम लवणसमुद्र के मध्य से जाते हुए कृष्ण ट्र 15 वासुदेव के श्वेत व पीत ध्वज के अग्रभाग को देख सकोगे।"
र 191. Kapil Vasudev duly bowed before Tirthankar Munisuvrat and asked, SI 12 “Bhante! Should I go and behold the great Krishna Vasudev?" 5 Arihant Munisuvrat, “Beloved of gods! It has never happened, does not 5 happen, and will never happen that two Tirthankars, two Chakravartis, two 2 Baldevs, or two Vasudevs see each other. However, you will be able to see the
edge of the white and yellow flag of Krishna Vasudev while he is crossing the - Lavan sea." 5 शंखनाद-मिलन
सूत्र १९२ : तए णं कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता हत्थिखधं । दुरूहइ, दुरूहित्ता सिग्घं सिग्घं जेणेव वेलाउले तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कण्हस्स ई
र वासुदेवस्स लवणसमुदं मज्झमज्झेणं वीइवयमाणस्स सेयापीयाइं धयग्गाइं पासइ, पासित्ता एवं ट 15 वयइ-'एस णं मम सरिसपुरिसे उत्तमपुरिसे कण्हे वासुदेवे लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयइ' द
र ति कट्ट पंच जन्नं संखं परामुसइ मुहवायपूरियं करेइ। 5 सूत्र १९२ : कपिल वासुदेव ने तीर्थंकर मुनिसुव्रत को यथाविधि वन्दन किया और हाथी पर द र आरूढ़ होकर अति शीघ्र गति से समुद्रतट पर आये। वहाँ उन्होंने लवणसमुद्र पार करते हुए कृष्ण र वासुदेव के श्वेत पीत ध्वज का अग्रभाग देखा और बोले-“यह मेरे समान पुरुष है। यह पुरुषोत्तम ट 15 कृष्ण वासुदेव हैं। ये लवणसमुद्र को पार कर रह रहे हैं।" और उन्होंने अपना पाँचजन्य शंख हाथ
र में ले मुँह के निकट ला उसे फूंका। 5 CONCH-SOUND GREETING
192. Kapil Vasudev duly bowed before Tirthankar Munisuvrat and riding 5 an elephant rushed to the sea shore with great speed. There he saw the edge 2 (256)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA' FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAI
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