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प्रजएज्ज्ज्जा (४८)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ड 5 citizens led by king Shrenik came to attend his discourse. They returned
after the discourse. 5 सूत्र ४ : तए णं गोयमसामी समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-कहं णं भंते ! जीवा वटुंति 5 वा हायंति वा? 5 सूत्र ४ : इसके पश्चात गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से प्रश्न किया-"भंते ! जीव र (आत्मा) किस प्रकार वृद्धि (निज के ज्ञानादि गुणों का विकास) को प्राप्त होता है और किस प्रकार र हानि को?”
____ 4. After that, Gautam Swami put forth a question before Shraman 2 Bhagavan Mahavir-"Bhante! How does a being grow and how does it B decline?” (here growing and declining refer to virtues like knowledge) 5 भगवान द्वारा समाधान
सूत्र ५ : गोयमा ! से जहाणामए बहुलपक्खस्स पडिवयाचंदे पुण्णिमाचंदं पणिहाय हीणे, , 15 वण्णेणं; हीणे सोम्मयाए, हीणे निद्धयाए, हीणे कंतीए एवं दित्तीए जुत्तीए छायाए पभाए ओयाए द र लेस्साए मंडलेणं,
तयाणंतरं च णं बीयाचंदे पाडिवयं चंदं पणिहाय हीणतराए वण्णेणं जाव मंडलेणं,
तयाणंतरं च णं तइयाचंदे बिइयाचंदं पणिहाय हीणतराए वण्णेणं जाव मंडलेणं, र एवं खलु एएणं कमेणं परिहायमाणे परिहायमाणे जाव अमावस्साचंदे चाउद्दसिचंदं पणिहाय द उ नटे वण्णेणं जाव नढे मंडलेणं। र एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव पव्वइए समाणे हीणे खंतीए ड र एवं मुत्तीए गुत्तीए अज्जवेणं मद्दवेणं सच्चेणं तवेणं चियाए अकिंचणयाए बंभचेरवासेणं, टे 15 तयाणंतरं च णं हीणे हीणतराए खंतीए जाव हीणतराए बंभचेरवासेणं, एवं खलु एएणं कमेणं ट
र परिहीयमाणे परिहीयमाणे गढे खंतीए जाव णट्टे बंभचेरवासेणं। 5 सूत्र ५ : “गौतम ! जिस प्रकार कृष्णपक्ष की एकम (प्रतिपदा) का चन्द्र पूर्णिमा के चन्द्र की ट र तुलना में वर्ण (शुक्लता), सौम्यता, स्निग्धता, और कान्ति में हीन होता है। उसी प्रकार वह दीप्ति र (चमक), युक्ति (आकाश से संयोग), छाया, प्रभा, ओजस् (सामर्थ्य), लेश्या (किरण), और मण्डल 15 (गोलाई) से क्षीण होता है। __“कृष्णपक्ष की द्वितीया का चन्द्रमा इन सभी गुणों में एकम के चन्द्रमा से क्षीण होता है।
"इसके बाद तृतीया का चन्द्रमा दूज के चन्द्रमा से भी क्षीण होता है। इसी तरह आगे भी द र प्रतिदिन क्रमशः हीन होता जाता है। अमावस्या का चन्द्रमा चतुर्दशी के चन्द्रमा से भी हीन होता है 5 र और उसके वर्ण आदि उपरोक्त सभी गुण नष्ट हो जाते हैं।
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
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