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प्रज्ज् ( २०८ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
85. Krishna Vasudev was pleased and contented to get this news from the emissary. He sent the emissary off after duly honouring him.
स्वयंवर के लिए कृष्ण का प्रस्थान
सूत्र ८६ : तए णं से कहे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'गच्छह गं तुमं देवाप्पिया ! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरिं तालेहि । '
तणं से कोडुंबियपुरिसे करयल जाव कण्हस्स वासुदेवस्स एयम पडिसुणेइ, पडिणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाइयं भेरिं महा महया सद्देणं ताले ।
सूत्र ८६ : तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुष (सेवक ) को बुला कर आदेश दिया"देवानुप्रिय ! सुधर्मा सभा में जाकर सामुदायिक भेरी बजाओ।"
सेवक ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक वासुदेव कृष्ण की आज्ञा स्वीकार की और सुधर्मा सभा में जाकर जोर-जोर से भेरी बजाई ।
KRISHNA VASUDEV'S DEPARTURE
86. Krishna Vasudev called his servant and instructed, “Beloved of gods ! Go to the Sudharma hall and blow the trumpet for general assembly."
The servant joined his palms and with due greetings and humility accepted the order. He went to the Sudharma hall and blew the trumpet loudly.
सूत्र ८७ : तए णं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुहविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महसेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ पहाया जाव विभूसिया जहा विभव- इड्डि-सक्कार-समुदएणं अप्पेगइया जाव पायविहार-चारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव कण्हं वासुदेवं जएणं विजएणं वद्धावेंति ।
सूत्र ८७ : उस सामुदायिक भेरी की आवाज सुनकर समुद्रविजय आदि सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति ( विस्तार पूर्व के समान - सू- ८१) स्नानादि करके अपने-अपने वैभव, ऋद्धि और सत्कार के अनुरूप वाहनादि पर चढ़कर कृष्ण वासुदेव के पास पहुँचे और यथाविधि उनका वन्दन अभिनन्दन किया।
87. Hearing the sound of the trumpet Samudravijaya and other prominent people (as detailed in para 81) got ready and riding the means of conveyance befitting their respective status came to Krishna Vasudev and formally greeted him.
सूत्र ८८ : तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हयगय जाव पच्चपिणंति ।
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