________________
-
( १३९) टा
र चौदहवाँ अध्ययन ः तेतलिपुत्र हे सूत्र ४४ : तए णं से पोट्टिले देवे पोट्टिलारूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता तेयलिपुत्तस्स अदूरसामंते टा र ठिच्चा एवं वयासी-“हं भो तेयलिपुत्ता ! पुरओ पवाए, पिट्ठओ हत्थिभयं, दुहओ अचक्खुपासे, ड 5 मज्झे सराणि परिसंति, गामे पलत्ते, रन्ने झियाइ, रन्ने पलिते गामे झियाइ, आउसो तेयलिपुत्ता ! र कओ वयामी ?"
सूत्र ४४ : उसी समय पोट्टिल देव ने विक्रिया द्वारा पोट्टिला का रूप धारण किया और र तेतलिपुत्र के निकट उपस्थित होकर कहा-“हे तेतलिपुत्र ! आगे खाई है और पीछे हाथी का भय। द 15 दोनों पार्श्व में ऐसा अंधकार है कि आँखों को कुछ दिखाई नहीं देता। बीच में वाणों की वर्षा हो । २ रही है। गाँव में आग लगी है तो जंगल धधक रहा है और जंगल में आग लगी है तो गाँव धधक र रहा है। आयुष्मान तेतलिपुत्र ! ऐसे में हम कहाँ जाएँ ? किसकी शरण में ?" 15 44. Just at that moment god Pottil took the form of Pottila and
materialized there. The god said, “Tetaliputra! You are caught between the fire and a frying pan. In the center there is a rain of arrows and all sides are
pitch dark. There is a forest fire and the village is also in flames. Long lived 5 Tetaliputra! Under such conditions where should one go? Where should one 5 take refuge?" 15 पोट्टिल देव द्वारा प्रेरणा र सूत्र ४५ : तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलं देवं एवं वयासी-"भीयस्स खलु भो पव्वज्जा ड 5 सरणं, उक्कंठियस्स सदेसगमणं, छुहियस्स अन्नं, तिसियस्स पाणं, आउरस्स भेसज्जं, माइयस्स र रहस्सं, अभिजुत्तस्स पच्चयकरणं, अद्धाणपरिसंतस्स वाहणगमणं, तरिउकामस्स पवहणं किच्चं, द 5 परं अभिओजितुकामस्स सहायकिच्चं, खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स एत्तो एगमवि ण भवइ।" र सूत्र ४५ : तेतलिपुत्र ने पोट्टिल देव को उत्तर दिया-अहो ! ऐसे पूर्ण भयभीत व्यक्ति के लिए द 15 दीक्षा ही एकमात्र आश्रय है। जैसे उत्कंठित के लिए स्वदेश, भूखे के लिए अन्न, प्यासे को पानी, ड र रोगी को औषध, मायावी को रहस्य, अभियुक्त को विश्वास उत्पन्न करना, क्लान्त को वाहन गमन, ट र जलयात्री को जलपोत और शत्रु का पराभव करने वाले को सहयोग आलम्बनस्वरूप है। किन्तु ड 5 क्षमावान, संयमी और जितेन्द्रिय को इनमें से एक की भी आवश्यकता नहीं होती।" 15 INSPIRATION BY GOD POTTIL र 45. Tetaliputra replied, “Oh! For a person in such panicky situation ट
the only refuge is Diksha. As his motherland is the source of solace for a c 5 homesick so is food for hungry, water for thirsty, medicine for sick, 5 5 mystery for trickster, inspiring faith for an accused, conveyance for a tired, SI S ship to a sea farer, and support of a mighty warrior for one desirous of
(139
15 CHAPTER-14 : TETALIPUTRA ynnnnnAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnAKA
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org