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र पन्द्रहवाँ अध्ययन : नंदीफल
( १५५ ) डा 15 सूत्र १२ : एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव पंचसु कामगुणेसुड र नो सज्जेइ, नो रज्जेइ, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं समणीणं सावयाणं सावियाणंड र अच्चणिज्जे भवइ, परलोए वि य नो आगच्छइ जाव वीईवइस्सइ जहा व ते पुरिसा। हे सूत्र १२ : इसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणों ! हमारा जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थिनी पाँच इन्द्रियों । र सम्बन्धी कामभोगों में आसक्त अनुरक्त नहीं होता वह इसी भव में अनेक श्रमण-श्रमणी तथा ट 15 श्रावक-श्रविकाओं का पूजनीय होता है और परलोक में भी दुःख नहीं पाता। वह क्रमशः संसार 15 सागर को पार कर जाता है। B 12. Long-lived Shramans! This is how those of our ascetics who, after a 5 getting initiated, do not indulge in and get infatuated with the lusty
pleasures of their five sense organs, become the objects of reverence of many 15 ascetics as well as the laity during this life. Besides this they also do not suffer miseries in the next life and are gradually liberated.
सूत्र १३ : तत्थ णं जे से अप्पेगइया पुरिसा धण्णस्स एयमद्वं नो सद्दहति नो पत्तियंत्ति नो टा 15 रोयंति, धन्नस्स एयमटुं असद्दहमाणा जेणेव ते णंदिफला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेसिंडा
र नंदिफलाणं मूलाणि य जाव वीसमंति, तेसिं णं आवाए भद्दए भवइ, ततो पच्छा परिणममाणा र जाव ववरोति। र सूत्र १३ : सार्थ में रहे जिन व्यक्तियों को धन्य सार्थवाह की बात पर श्रद्धा, प्रतीति व रुचि ।
नहीं हुई वे उन नंदीफल वृक्षों के निकट गये। उन्होंने उन वृक्षों के मूलादि का भक्षण किया और टा 15 उनकी छाया में विश्राम भी किया। उन्होंने तात्कालिक आनन्द तो प्राप्त किया, किन्तु क्रमशः वृक्षों के दा
र दुष्प्रभाव के प्रभावी होने पर उन्हें जीवन से हाथ धोना पड़ा अर्थात् प्राणों से रहित होना पड़ा। डा B 13. Some members of the caravan did not have faith, confidence, and a 5 interest in what Dhanya merchant had conveyed to them all. Accordingly &
they went near the Nandiphal trees and ate fruits etc. from and rested in the shade of those trees. They did enjoy all this in the beginning but as time I
passed the toxicity of those trees started taking effect and in the end they र lost their lives. 5 सूत्र १४ : एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पव्वइए पंचसुदा र कामगुणेसु सज्जेइ, जाव अणुपरियट्टिस्सइ, जहा व ते पुरिसा। ए सूत्र १४ : इसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणो ! हमारा जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थिनी पाँच इन्द्रियों के 5 विषय भोग में आसक्त होता है वह उन पुरुषों की तरह दुःख भोगता हुआ संसार चक्र में भ्रमण डा र करता रहता है। 5 14. Long-lived Shramans! This is how those of our ascetics who, after टा 15 getting initiated, indulge in and get infatuated with the lusty pleasures of C 5 CHAPTER-15 : THE NANDI-FRUIT
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