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________________ । सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका : आमुख । UUUUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज शीर्षक-अवरकंका (दोवती)-अमरकंका (द्रौपदी)-नाम विशेष। अमरकंका एक नगरी का नाम है तथा द्रौपदी एक महिला का। श्रीकृष्ण वासुदेव की बहन तथा पाँच पांडवों की पत्नी द्रौपदी चरित्र नायिका है अतः इस अध्ययन का अपर नाम द्रौपदी है। द्रौपदी का अपहरण कर उसे अमरकंका नाम की नगरी में ले जाया गया था अतः इस अध्ययन का नाम अमरकंका है। इस अपेक्षाकृत विशाल कथा में अनेक उदाहरण हैं जिनके आधार पर कई महत्त्वपूर्ण भावों को प्रकट किया गया है। भय और स्वार्थवश मनुष्य बिना सोचे समझे ऐसे अकार्य कर बैठता है जो उसके अधःपतन का कारण बनते हैं। सुविधाओं में लिप्त रहकर गुरु आज्ञा का पालन नहीं करता। दैहिक आकर्षण से आकांक्षाओं को मन में बसा लेता है। आत्मिक विकास की राह में ऐसी अनेक बाधाओं-उनके प्रभावों तथा उनसे मुक्ति की बातें इस रोचक कथा में समझाई गई हैं। ___ कथासार-चम्पानगरी में तीन ब्राह्मण अपनी पत्नियों सहित रहते थे। ये सभी अनुक्रम से प्रतिदिन एक भाई के घर भोजन करते थे। एक दिन एक भाई की स्त्री नागश्री के यहाँ सब भोजन करने वाले थे। उसने प्रचर भोजन सामग्री बनवाई तथा एक तम्बे की खब मसालेदार सब्जी स्वयं अपने हाथ से बनायी। चखने पर मालूम पड़ा वह तुम्बा खारा (कड़वा) था। नागश्री ने वह सब्जी तो उठाकर रख दी और एक अन्य मीठे तुम्बे की सब्जी बना दी। सब लोगों ने पेट भर भोजन किया। . उस समय धर्मघोष नामक आचार्य अपने शिष्य समुदाय सहित चम्पानगरी में आये हुये थे। उनके एक शिष्य धर्मरुचि अपने मासखमण के पारणे के लिए उस दिन भिक्षा हेतु निकले। नागश्री ने उन्हें सहज-अवकर (कूड़ा डालने की उकरडी) जान उनके पात्र में वह कड़वी सब्जी ऊंडेल दी। धर्मरुचि ने लौटकर प्राप्त भिक्षान्न अपने गुरु को दिखाया। गुरु ने पहचान लिया कि वह सब्जी विषैली है अतः उन्होंने धर्मरुचि से कहा कि वह सब्जी उचित स्थान देखकर वहाँ परठ दे और पुनः अन्य भिक्षा लेकर आवे। धर्मरुचि ने उचित स्थान देख वहाँ एक बूँद सब्जी डाली। उस एक बूँद पर अनेक चींटियाँ आ गईं और वह सब्जी चखते ही तत्काल मर गईं। धर्मरुचि ने विचार किया कि जब एक बूंद से इतने जीव मर गये तो सारी सब्जी डाल देने से तो असंख्य जीवों का हनन हो जायेगा। यह सोच उसने सारी सब्जी स्वयं ही अपने उदर में डाल ली और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। यह समाचार धीरे-धीरे फैल गया और सभी नागश्री पर थू-थू करने लगे। उसके परिवार वालों ने भी उसे धिक्कार कर घर से निकाल दिया। उसे कोई आश्रय नहीं मिला और वह दुःख भोगती हुई मर गई। अनेक जन्मों तक उसने नरक की यातना भोगी। (162) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA E FAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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