________________
---
-
मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्स
र अठाहरवाँ अध्ययन : सुंसुमा
( ३२५ ) SI 15 जैसे चिलातीपुत्र सुंसुमा पर आसक्त होकर कुकर्म करने पर उतारू हो गया और धन्य श्रेष्ठी के दा
र पीछा करने पर सैकड़ों संकटों से व्याप्त महा-अटवी को प्राप्त हुआ॥१॥ 15 उसी प्रकार जीव विषय-सुखों में लुब्ध होकर पापक्रियाएँ करता है। पापक्रियाएँ करके कर्म के द 12 वशीभूत होकर इस संसाररूपी अटवी में घोर दुःख पाता है॥२॥
र यहाँ धन्य श्रेष्ठी के समान गुरु हैं, उसके पुत्रों के समान साधु हैं और अटवी के समान संसार द 15 है। सुता (पुत्री) के मांस के समान आहार है और राजगृह के समान मोक्ष है॥३॥
र जैसे उन्होंने अटवी पार करने और नगर तक पहुँचने के उद्देश्य से ही सुता के माँस का भक्षण ट 15 किया, उसी प्रकार साधु, गुरु की आज्ञा से आहार करते हैं॥४॥
र वे भवितात्मा एवं महासत्त्वशाली मुनि आहार करते हैं एक मात्र संसार को पार करने और मोक्ष दे 15 प्राप्त करने के ही उद्देश्य से। आसक्ति से अथवा शरीर के वर्ण, बल या रूप के लिए नहीं ॥५॥
| THE MESSAGE |
Just as Chilatiputra, infatuated with Sumsuma, indulged in detestable 12 deeds and, chased by Dhanya merchant, ended up in the great wilderness filled with hundreds of dangers. (1)
In same way a being lured by carnal pleasures indulges in sinful activities. As a result he is trapped in the bondage of Karmas and suffers much in the wilderness of mundane life. (2)
Here Dhanya merchant is Guru, his sons are ascetics, the wilderness is 5 mundane life. The flesh of the dead daughter is food and Rajagriha city is 5 Moksha. (3)
As they consumed the meat from the corpse of the daughter solely for the purpose of crossing the wilderness, same way ascetics consume food with the 5 permission of the guru. (4)
Those great souls and accomplished ascetics consume food solely for the purpose of crossing the mundane wilderness and attaining liberation and not
because of attachment nor for the complexion, strength or beauty of the ( body. (5)
i
PTER-18 : SUMSUMA
( 325 ) टा LEAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAALI
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org