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________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् 1 द्वितीय श्रूतस्कंध : धर्मकथा : आमुख । - शीर्षक-धम्मकहा-धर्मकथा-कथा के माध्यम से धर्म की चर्चा अथवा धर्म संबंधी कथा। कथासार : सम्यक् साधना से कर्मों का क्षय होता है और अन्ततः मोक्ष प्राप्ति। किन्तु जिन जीवों के सम्पूर्ण डा र कर्मों का क्षय नहीं होता अपितु पुण्य कर्मों का उपार्जन होता रहता है वे वैमानिक देवलोक में उत्पन्न होते हैं। जो र जीव उत्कृष्ट तपस्या तो करते हैं अर्थात् पुण्योपार्जन तो करते हैं किन्तु चारित्र पालन में शथिल्य तथा विराधना टा 15 भी करते रहते हैं वे आत्मशुद्धि के उच्चस्तर तक नहीं पहुंच पाते और अपेक्षाकृत निम्नकोटि के देव बनते हैं, द 15 यथा-भवनवासी, व्यन्तर व ज्योतिष्क। र धर्मकथा में इसी प्रकार की देवियों के पूर्वजन्म की कथाएं संकलित हैं जो पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वनाथ के ही र तीर्थ में हुई हैं। इसके दस वर्ग हैं। तथा प्रत्येक वर्ग में इन्द्र-विशेष की पटरानियों-अग्रमहिषियों की कथाएं हैं। प्रथम वर्ग में चमरेन्द्र की, द्वितीय वर्ग में बलि इन्द्र की, तीसरे वर्ग में चमरेंद्र के अतिरिक्त दक्षिण दिशा के अन्य इन्द्रों की, चौथे वर्ग में बलीन्द्र के अतिरिक्त उत्तर दिशा के अन्य इन्द्रों की, पांचवें वर्ग में दक्षिण दिशा के वाणव्यंतर इन्द्रों की, छठे वर्ग में उत्तर दिशा के वाणव्यंतर इन्द्रों की, सातवें वर्ग में सूर्य की, आठवें वर्ग में चन्द्र की, नवें वर्ग में सौधर्मेन्द्र की तथा दसवें वर्ग में ईशानेन्द्र की। इन कथाओं में लगभग पूर्ण समानता है। अतः एक ही पद्धति अपनाई गई है। सर्वप्रथम पटरानी का नाम है, > र फिर राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में भगवान महावीर के आने की और परिषद द्वारा उपासना की चर्चा है। ट ए उस समय वह देवी-विशेष प्रभु के सम्मुख उपस्थित होकर नृत्यादि के प्रदर्शन द्वारा भावमय उपासना करती है। ट 5 उसके चले जाने पर गौतम स्वामी प्रभु से पूछते हैं कि उस देवी ने ऐसी ऋद्धि कैसे प्राप्त की? भगवान देवी के दा 15 पूर्वभव की कथा कहते हैं। इस पूर्व भव की कथा में नगरी का नाम, माता-पिता के नाम, अर्हत् पार्श्वनाथ की ड देशना, दीक्षा, दीक्षा के पश्चात् आचार में शिथिलता अन्त में अनशन द्वारा प्राण त्याग तथा देवलोक में जन्म। देव । र भव की आयुष्य तथा वहां से महाविदेह में जन्म से मोक्ष प्राप्ति। इस प्रकार प्रथम वर्ग में काली देवी की कथा पूर्ण र विस्तार सहित दी गई है। अन्य सभी कथाओं में नामादि विशिष्टताओं के उल्ल्लेख हैं तथा कथा प्रायः प्रथम वर्ग के ए समान बताई गई है। इस प्रकार यह द्वितीय श्रुतस्कंध संक्षेप मे पूर्ण किया गया है। 5 (344) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA C Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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