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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
got initiated. Now Pundareek was the king and Kandareek the heir to the throne. Ascetic Mahapadma studied the fourteen sublime canons. The Sthavir ascetic left the town and resumed his itinerant life. After long spiritual practices Mahapadma obtained liberation.
सूत्र ५ : तए णं थेरा अन्नया कयाइं पुणरवि पुंडरीगिणीए रायहाणीए णलिणिवणे उज्जाणे समोसढा। पोंडरीए राया णिग्गए। कंडरीए महाजणसद्दं सोच्चा जहा महाब्बलो जाव पज्जुवास । थेरा धम्मं परिकहेंति । पुंडरीए समणोवासए जाए जाव पडिगए ।
सूत्र ५ : कालान्तर में पुनः स्थविर मुनि पुण्डरीकिणी नगरी के नलिनीवन उद्यान में पधारे। राजा पुण्डरीक उन्हें वन्दना करने गये। युवराज कण्डरीक भी अनेक लोगों से स्थविर मुनि के आगमन की बात सुनकर वन्दना करने गये ( विस्तृत वर्णन भगवती सूत्र में वर्णित महाबल कुमार के कथानक के समान समझना) वे स्थविर मुनि की उपासना करने लगे और स्थविर मुनि ने उन्हें धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश सुनकर पुण्डरीक श्रमणोपासक बन गये और अपने घर लौट आये।
5. Later, once again the Sthavir ascetic arrived there and stayed in the Nalinivan garden. King Pundareek came to pay homage to the ascetic. When he heard about the arrival of the great ascetic, prince Kandareek also went to pay homage. (Detailed description is identical to that of Mahabal Kumar in Bhagavati Sutra) He worshipped and listened to the discourse of the great ascetic. King Pundareek became a Shramanopasak and returned to his palace.
) कण्डरीक की दीक्षा
सूत्र ६ : तए णं कंडरीए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठाए उट्ठित्ता जाव से जहेयं तुब्भे वदह, जं णवरं पुंडरीयं रायं आपुच्छामि, तए णं जाव पव्वयामि ।
'अहासुहं देवाणुप्पिया !'
सूत्र ६ : युवराज कण्डरीक ने खड़े होकर कहा - " भन्ते ! आपने जो कहा है वह अक्षरशः सत्य है । मैं पुण्डरीक राजा की अनुमति लेने के पश्चात् दीक्षा ग्रहण करूँगा । "
स्थविर मुनि ने उत्तर दिया – “देवानुप्रिय ! तुम्हें जिसमें सुख मिले वह करो। "
INITATION OF KANDAREEK
6. Prince Kandareek got up and said, “Bhante ! What you have said is indeed true. I will seek permission from king Pundareek and get initiated." The Sthavir ascetic replied, "Beloved of gods! Do as you please."
१. उट्ठाए उट्ठित्ता से एक अभिप्राय यह भी है- संयम के लिए उपस्थित होकर ।
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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