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________________ र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १६९ ) ट 5 सूत्र ७ : यथासमय वे ब्राह्मण बंधु स्नानकर सुखासन पर बैठे। उन्हें यथेष्ट भोजन परोसा गया। के भोजन के बाद आचमन कर स्वच्छ हो, हाथ-मुँह पोंछकर वे अपने-अपने काम में लग गये। तत्पश्चात् स्नानादि कर वस्त्राभूषण पहन विभूषित हुई ब्राह्मणियों ने भी पेट भर भोजन किया और टा 5 अपने-अपने घर लौटकर अपने कार्यों में जुट गईं। 2 7. At the usual hour the Brahman brothers sat down to eat, after taking a their bath. They were served liberal quantities of various dishes. After meals they washed their hands and mouths and resumed their normal routine. After that, the ladies also took bath, got dressed up and ate their fill. They dispersed and resumed their normal activities. र स्थविर-आगमन हे सूत्र ८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा जाव बहुपरिवारा जेणेव चंपा णामं टा र नयरी, जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं जाव विहरंति। टा 5 परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया। र सूत्र ८ : काल के इस भाग में धर्मघोष नाम के स्थविर अपने विशाल शिष्य परिवार के साथ दी 5 चम्पा नगरी के सुभूमि भाग उद्यान में पधारे। उचित उपाश्रय की याचना कर वहां ठहरे। परिषद ड 5 निकली और धर्मोपदेश सुन लौट गई। 15 ARRIVAL OF THE ASCETIC 2 8. During that period of time the great ascetic Sthavir Dharmaghosh 2 arrived, with a large family of his disciples, in the Subhumibhag garden 15 outside Champa city. He stayed there after seeking a suitable place. A SI 15 delegation of citizens came and after his discourse returned back. र सूत्र ९ : तए णं तेसिं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी धम्मरुई नाम अणगारे ओराले जाव र तेउलेस्से मासं मासेणं खममाणे विहरइ। तए णं से धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि 15 पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, करित्ता बीयाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव उग्गाहेइ, डी र उग्गाहित्ता तहेव धम्मघोसं थेरं आपुच्छइ, जाव चंपाए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमकुलाइं जाव र अडमाणे जेणेव नागसिरीए माहणीए गिहे तेणेव अणुपवितु। 15 सूत्र ९ : धर्मघोष स्थविर के एक शिष्य थे धर्मरुचि अनगार। वे उदार-उग्र तपस्वी थे और टा र तेजोलेश्या के धारक भी। वे एक-एक मास का तप करते रहते थे। उस दिन उनके मासखमण के 5 पारणे का दिन था। उन्होंने पहली पौरुषी में स्वाध्याय किया फिर क्रमशः ध्यानादि किये (विस्तृत विवरण गौतम स्वामी के समान)। तीसरे प्रहर में उन्होंने पात्रों का प्रतिलेखन किया और पात्र लेकर र धर्मघोष स्थविर से आज्ञा प्राप्त कर भिक्षाटन के लिए निकले। चम्पानगरी के उच्च, नीच व मध्यम द 15 कुलों में घूमते हुए वे नागश्री ब्राह्मणी के घर में आए। PCHAPTER-16 : AMARKANKA AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA (169) द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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