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र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
( २०५ ) SI 5 'जस्स णं अहं पुत्ता ! रायस्स वा जुवरायस्स वा भारियत्ताए सयमेव दलइस्सामि, तत्थ णं तुमंड र सुहिया वा दुक्खिया वा भविज्जासि, तए णं ममं जावजीवाए हिययडाहे भविस्सइ, तं णं अहं से 15 तव पुत्ता ! अज्जयाए सयंवरं विरयामि, अज्जयाए णं तुमं दिण्णसयंवरा, जं णं तुम सयमेव डा
र रायं वा जुवरायं वा वरेहिसि, ते णं तव भत्तारे भविस्सइ,' त्ति कट्ट ताहिं इटाहिं जावट 15 आसासेइ, आसासित्ता पडिविसज्जेइ। र सूत्र ८0 : राजा द्रुपद ने अपनी पुत्री को गोद में बिठाया और उसके रूप, यौवन और लावण्य ट ए को देखकर विस्मित हो गया। उसने द्रौपदी से कहा-“हे पुत्री ! मैं स्वयं यदि किसी राजा या द
युवराज की पत्नी के रूप में तुझे दूंगा तो कौन जाने तू वहाँ सुखी हो या दुःखी? मुझे जीवनभर डा र कहीं पश्चात्ताप न हो? अतः हे पुत्री ! आज से मैं तुझे स्वयंवर की अनुमति देता हूँ। आज से तू टा 5 स्वयंवरा हुई। तू अपनी इच्छा से जिस किसी राजा या युवराज का वरण करेगी वही तेरा भतार द 15 होगा।" इसप्रकार राजा द्रुपद ने इष्ट, प्रिय और मनोज्ञवाणी में ये शब्द कहकर द्रौपदी को आश्वस्त ड र कर विदा किया।
80. King Drupad asked his daughter to sit in his lap. He was astonished to see the charming beauty and youth of his daughter. Drupad said to his daughter, “Daughter! If I select some prince or king for you and marry you to J him, who knows if you will be happy or sad? In order to avoid repenting
throughout my life I, today, give you permission to choose your own husband. 5 Whichever prince or king you choose will become your husband. The king sent 5 her away after uttering these words in sweet, caressing and reassuring voice. 5 द्रौपदी का स्वयंवर र सूत्र ८१ : तए णं से दुवए राया दूयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुम 15 देवाणुप्पिया ! बार वइं नयरिं, तत्थ णं तुम कण्हं वासुदेवं, समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे, डा र बलदेवपामुक्खे पंच महावीरे, उग्गसेणपामोक्खे सोलस रायसहस्से, पज्जुण्णपामुक्खाओ टा 5 अधुढाओ कुमारकोडीओ, संबपामोक्खाओ सहि दुहन्तसाहस्सीओ, वीरसेणपामुक्खाओ इक्कवीसंड र वीरपुरिससाहस्सीओ, महसेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ, अन्ने य बहवे
राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहपभिइओ करयलपरिग्गहिअं दसनहं द 15 सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावित्ता एवं वयाहि
र सूत्र ८१ : राजा द्रुपद ने तब दूत को बुलवाया और उससे कहा-“देवानुप्रिय ! तुम द्वारका ट 15 नगरी जाओ और वहाँ के सभी प्रतिष्ठित व्यक्तियों से भेंट करो। वे सम्माननीय व्यक्ति हैं- कृष्ण ड र वासुदेव, समुद्रविजय आदि दस दशार, बलदेव आदि पाँच महावीर, उग्रसेन आदि सोलह हजार र राजा, प्रद्युम्न आदि साढ़े तीन कोटि राजकुमार, शाम्ब आदि साठ हजार दुर्दान्त वीर, वीरसेन दा
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