________________
फज्ज्ज्
( ३४२ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र २९ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं एगूणवीसइमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते ।
सूत्र २९ : हे जम्बू ! धर्म की आदि करने वाले तीर्थंकर तथा सिद्ध गति को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने उन्नीसवें ज्ञात अध्ययन का यही अर्थ कहा है। ऐसा मैंने सुना है; ऐसा ही कहता हूँ।
29. Jambu! This is the text and the meaning of the nineteenth chapter of the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I confirm.
सूत्र ३० : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं छट्टस्स अंगस्स पढमस्स सुयक्खंधस्स अयमट्ठे पण्णत्ते त्ति बेमि ।
सूत्र ३० : हे जम्बू ! सिद्धगति को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने छठे अंग के प्रथम स्कंध का यही अर्थ बताया है।
30. Jambu! This is the text and the meaning of the first part of the sixth canon as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I confirm.
सूत्र ३१ : तस्स णं सुयक्खंधस्स एगूणवीसं अज्झयणाणि एक्कसरगाणि एगूणवीसाए दिवसेसु समप्पंत्ति ।
सूत्र ३१ : इस प्रथम श्रुतस्कंध के उन्नीस अध्ययन हैं। एक-एक अध्ययन एक-एक दिन में पढ़ने से उन्नीस दिनों में यह श्रुतस्कन्ध सम्पूर्ण होता है ।
31. This first part has nineteen chapters. Reading one chapter every day it is completed in nineteen days.
(342)
Jain Education International
॥ एगूण वीसइमं अज्झयणं समत्तं ॥
॥ उन्नीसवाँ अध्ययन समाप्त ॥
|| END OF THE NINETEENTH CHAPTER ||
॥ पढमं सुयक्खंधं समत्तं ॥
॥ प्रथम श्रुतस्कंध समाप्त ॥
|| END OF THE FIRST PART ||
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org