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प्रज्ज्ज्ज्जान क( ३५२)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा 15 मुझे सूचित करो।” (विस्तृत आज्ञा सूर्याभ देव के समान-राजप्रश्नीयसूत्र-९) आभियोगिक देवों ने टा 15 आज्ञानुसार हज़ार योजन विस्तार वाला विमान बनाया। काली देवी अपने समुदाय व ऋद्धि-वैभव डा र सहित श्रमण भगवान महावीर के सम्मुख उपस्थित हुई और नृत्यादि प्रदर्शन कर वन्दना-नमस्कार दी 5 कर वापस लौट गई। R 10. She then had a desire—“It would be proper for me to offer my S1 R salutations to Shraman Bhagavan Mahavir in person and worship him." She 5 at once called some Abhiyogik Devs (servant-gods) and said, “Beloved of gods!
Prepare the best of the vehicles suitable for divine movement and inform me.” (detailed instructions as mentioned in the Raj-prashniya Sutra in connection with the Suryaabh god) Accordingly the servant-gods created a s thousand Yojan large Viman. Goddess Kali arrived before Shraman
Bhagavan Mahavir with her retinue, in all her power and glory. She a 5 performed dances, etc. and returned after due salutations
र सूत्र ११ : भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता डा 115 एवं वयासी-कालीए णं भन्ते ! देवीए सा दिव्वा देविड्डी कहिं गया ?' कूडागारसाला-दिटुंतो। दा
2 सूत्र ११ : गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार कर पूछा-"भन्ते ! 15 काली देवी की वह दिव्य ऋद्धि कहाँ चली गई?" भगवान ने कूटागारशाला का दृष्टान्त दिया। (अ. ८ २१३ सू. ५ के समान)
11. Gautam Swami asked Shraman Bhagavan Mahavir, “Bhante! Where 5 did the divine powers of Kali Devi disappear?" Bhagavan answered the
question by giving the example of Kutagar. (see appendix of Ch. 13) 5 काली देवी का पूर्व-भव
___ सूत्र १२ : 'अहो णं भन्ते ! काली देवी महिड्डिया। कालीए णं भन्ते ! देवीए सा दिव्वा टा 5 देविड्डी किण्णा लद्धा ? किण्णा पत्ता ? किण्णा अभिसमण्णागया ?'
___एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जम्बूद्दीवे र दीवे भारहे वासे आमलकप्पा णाम णयरी होत्था। वण्णओ। अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया। 5 सूत्र १२ : “भन्ते ! काली देवी महान् ऋद्धिशाली है। उसे यह दिव्य ऋद्धि पूर्व-भव में क्या द र करने से मिली ? देव-भव कैसे प्राप्त हुआ और कैसे वह शक्ति उपयोग में आई?" र यह वर्णन भी सूर्याभ देव के वर्णन के समान है। भगवान ने उत्तर दिया-हे गौतम ! काल के द 15 उस भाग में भारतवर्ष में आमलकल्पा नाम की नगरी थी। उसके बाहर आम्रशालवन नाम का चैत्य 5 र था। उस नगर में जितशत्रु राजा राज्य करता था। र (352)
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SÜTRA 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
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