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पढमं वग्गो - प्रथम वर्ग
पढमं अज्झयणं : काली प्रथम अध्ययन : काली
FIRST CHAPTER: KALI
सूत्र १ : तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे होत्था । वण्णओ । तस्स णं रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए तत्थ णं गुणसीलए णामं चेइए होत्था । वण्णओ ।
सूत्र १ : काल के उस भाग में राजगृह नामक नगर था। नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में गुणशील नामक चैत्य था। ( औपपातिकसूत्र के अनुसार वर्णन )
FIRST SECTION
1. Jambu! During that period of time there was a city named Rajagriha. Outside the city in the northeastern direction there was a Chaitya named Gunashil Chaitya. (Aupapatik Sutra)
सूत्र २ : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा णामं थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना कुलसंपन्ना जाव चउदसपुथ्वी, चउनाणोवगया, पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा, गामाणुगामं दूइज्जमाणा, सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे णयरे, जेणेव गुणसीलए चेइए, जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहति ।
सूत्र २ : काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी स्थविर आर्य सुधर्मा, जो उच्च जाति व कुल के थे तथा चौदह पूर्ववेत्ता व चार ज्ञान युक्त थे, अपने पाँच सौ श्रमण शिष्यों सहित अनुक्रम से ग्रामानुग्राम में विचरण करते हुए, सुखपूर्वक विहार करते हुए गुणशील चैत्य में पधारे। वहाँ यथाविधि ठहरकर तप-संयम साधनामय जीवन बिताने लगे ।
2. During that period of time, going from one village to another and staying comfortably there, Arya Sudharma, a disciple of Shraman Bhagavan Mahavir, with his five hundred disciples arrived in the Gunashil Chaitya. He belonged to a respectable family and clan and possessed the four types of knowledge including that of the fourteen sublime canons. With due procedure and formality he camped there and commenced his practices of penance and discipline.
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सूत्र ३ : परिसा णिग्गया । धम्मो कहिओ । परिसा जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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