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चउत्थो वग्गो-चतुर्थ वर्ग
पढमं अज्झयणं : रूया
प्रथम अध्ययन
रूपा
FIRST CHAPTER : RUPA
सूत्र ६० : एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं चउत्थस्स वग्गस्स चउप्पण्णं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - पढमे अज्झयणे जाव चउप्पण्णइमे अज्झयणे ।
FOURTH SECTION
सूत्र ६० : चतुर्थ वर्ग के सम्बन्ध में जम्बू स्वामी के प्रश्न के उत्तर में सुधर्मा स्वामी ने कहा"जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने चौथे वर्ग के चौपन अध्ययन बताये हैं । "
60. Answering the question of Jambu Swami regarding the fourth section Sudharma Swami said, "Jambu! According to Shraman Bhagavan Mahavir there are fifty four chapters in the fourth section."
सूत्र ६१ : पढमस्स अज्झयणस्स उक्खेवओ । एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ ।
सूत्र ६२ : तेणं कालेणं तेणं समएणं रूया देवी, रूयाणंदा रायहाणी, रूयगवडिंस भवणे, रूयगंसि सीहासणंसि, जहा कालीए तहा; नवरं पुव्वभवे चंपाए पुण्णभद्दे चेइए; रूयगगाहावई, रूयगसिरी भारिया, रूया दारिया, सेसं तहेव । णवरं भूयाणंद - अग्गमहिसित्ताए उववाओ, देसूणं पलिओवमं ठिई।
निक्खेवओ।
सूत्र ६१-६२ : प्रथम अध्ययन का अर्थ पूछने पर सुधर्मा स्वामी ने बताया - जम्बू ! राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में जब श्रमण भगवान विराजमान थे उसी समय रूपा देवी, रूपानन्दा राजधानी में रूपकावतंसक भवन में रूपक सिंहासन पर विराजमान थी । शेष समस्त वर्णन काली देवी के समान ही है। विशेषता यह है कि पूर्व-भव के कथानक में नगर का नाम चम्पा, चैत्य का नाम पूर्णभद्र, गाथापति का नाम रूपक, गाथापत्नी का नाम रूपकश्री और पुत्री का नाम रूपा था तथा मृत्यु के पश्चात् वह उत्तर दिशा के भूतानन्द नामक इन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में जन्मी है जिसकी आयु कुछ कम एक पल्योपम है। श्रमण भगवान ने प्रथम अध्ययन का यही अर्थ कहा है ।
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61-62. On asking about the meaning of the first chapter Sudharma Swami said Jambu! Shraman Bhagavan Mahavir was sitting in the Gunashil
SECOND SECTION: DHARMA KATHA
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