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जफ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
सूत्र १६ : कुछ समय बाद लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित देव ने शक्रेन्द्र के निर्देशानुसार उस देवी को आज्ञा दी - " तुम्हे इक्कीस बार लवणसमुद्र का चक्कर काटना है। और हर बार उसमें रहे घास, पत्ते, काठ, कचरा, अशुचि, सड़ी-गली व दुर्गन्धित वस्तुओं को हिला डुलाकर समुद्र से निकालकर एकान्त स्थान में डाल देना है।” इस प्रकार कहकर उस देवी को समुद्र की सफाई के कार्य में नियुक्त कर दिया गया।
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SHAKRENDRA'S ORDER
16. After some days, on the direction of Shakrendra (the king of gods) the god of the sea, god Susthit, ordered the evil goddess, "You have to go around the sea twenty one times and every time you have to collect all garbage, including grass, leaves, pieces of wood, and other decayed and decomposed things, and dump it at some remote isolated spot." With these words he appointed the evil goddess to the job of cleaning the sea.
सूत्र १७ : तए णं सा रयणद्दीवदेवया ते मागंदियदारए एवं वयासी - एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! सक्कवयणसंदेसेणं सुट्ठिएणं लवणाहिबइणा तं चेव जाव णिउत्ता । तं जाव अह देवाणुप्पिया ! लवणसमुद्दे जाव एडेमि ताव तुब्भे इहेव पासायवडिंसए, सुहंसुहेणं अभिरममाणा चिट्ठह । जइ णं तुब्भे एयंसि अंतरंसि उब्बिग्गा वा, उस्सुया वा, उप्पुया वा भवेज्जाह, तो तु पुरच्छिमिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह ।
सूत्र १७ : रत्नद्वीप की देवी ने तब माकन्दी पुत्रों से कहा- हे देवानुप्रियो ! शक्रेन्द्र की आज्ञा से सुस्थित देव ने मुझे लवण समुद्र की सफाई के काम में नियुक्त किया है। मैं जब तक लवण - समुद्र में जाकर इस कार्य में संलग्न रहूँ तब तक तुम इस श्रेष्ठ भवन में आनन्दपूर्वक रमण करना। इस बीच में यदि तुम ऊब जाओ, उत्सुक हो जाओ, अथवा कोई उपद्रव हो तो पूर्व दिशा के उद्यान में चले जाना।
17. The evil goddess came to the sons of Makandi and said, “Beloved of gods! On the direction of Shakrendra I have been appointed by Susthit god to clean the sea. As long as I am busy with this work you may enjoy the facilities of this large mansion. In case you get bored or want to break the monotony, or face some problem you may proceed to the eastern garden.
उद्यान वर्णन
सूत्र १८ : तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा, तं जहा - पाउसे य वासारत्ते य । तत्थ उकंदल-सिलिंध-दंतो णिउर- वर- पुप्फपीवरकरो । कुडयज्जुण-णीव-सुरभिदाणो, पाउसउउ-गयवरो साहीणो ॥ १ ॥
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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