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IP नवम अध्ययन : माकन्दी
(३७) डा र सूत्र ५२ : इसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणों ! जो साधु-साध्वी आचार्य-उपाध्याय के पास दीक्षा दी र ग्रहण करने के बाद भी मानवोचित कामभोगों का आश्रय लेता है, याचना करता है, उनकी स्पृहा डा र करता है, अथवा दृष्ट तथा अदृष्ट शब्दादि के भोग की इच्छा रखता है वह इस भव में अनेक ट 15 साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका आदि द्वारा निन्दनीय होता है तथा अनन्त-संसार में परिभ्रमण करता 8 1र है। उसकी गति जिनरक्षित जैसी हो जाती है। यथा15 पीछे देखने वाला छला गया और पीछे न देखने वाला निर्विघ्न पार उतर गया। इसलिए चारित्र डा र पालन (-प्रवचनसार) में आसक्तियों से दूर रहना चाहिए।।१।। र साधना पथ पर चलते हुए जो भोग की इच्छा रखते हैं, वे घोर संसार-सागर में गिर कर नष्ट ड
र हो जाते हैं और जो भोग की इच्छा से परे रहते हैं वे पार उतर जाते हैं।।२।। 1 5 2. Long-lived Shramans! Those of our ascetics who, after getting S
3 initiated, resort to, beg for, or desire for indulging into lusty libidinous 15 activities and crave for real or vicarious carnal pleasures become the objects 15 of criticism, public contempt, hatred and disrespect in this life. And moreover 2 they also suffer misery in the next life and are caught in the cycle of rebirth र indefinitely. They end up just as Jinarakshit did. As is said15 He who turned back was caught in the web and he who did not, crossed Punhindered. As such, on the path of spiritual practice, one should be free of S 15 indulgences. (1)
On the path of spiritual practices those who have desires for carnal C pleasures fall into the whirlpool of rebirths and those who are above these 5 desires cross the ocean. (2) र स्थिर जिनपालित
सूत्र ५३ : तए णं सा रयणदीवदेवया जेणेव जिणपालिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ताड 15 बहूहिं अणुलोमेहि य पडिलोमेहि य खर-महुर-सिंगारेहिं कलुणेहि य उवसग्गेहि या जाहे नो टा
र संचाएइ चालित्तए वा खोभित्तए वा विप्परिणामित्तए वा, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा डा 15 समाणा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
___ सूत्र ५३ : इसके बाद वह रत्नद्वीप की देवी जिनपालित के निकट गई और बहुत से मनोनुकूल, डा 15 प्रतिकूल, कठोर, मधुर, शृंगार युक्त तथा करुणोत्पादक उपसर्ग करने लगी। किन्तु जब उसे चंचल ट र व क्षुब्ध कर उसका हृदय परिवर्तन करने में विफल हुई तो वह मन और शरीर से थक गई। पूरी ड 5 तरह ग्लानि तथा खिन्नता से भरी वह जिस दिशा से आई थी उसी दिशा की ओर लौट गई। IS CHAPTER-9 : MAKANDI
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