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________________ भ ( ३३५ ) डा UUUUUUUDDDDDDDDDDज र उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक 15 सूत्र १५ : तए णं से कंडरीए अणगारे पुंडरीयस्स एयमढें णो आढाइ जाव संचिठ्ठइ। तए णंड र कंडरीए पुडंरीएणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अकामए अवसवसे लज्जाए गारवेण य ट 15 पोंडरीयं रायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता थेरेहिं सद्धिं बहिया जणवयविहारं विहरइ। तए णं से ड र कंडरीए थेरेहिं सद्धिं किंचि कालं उग्गंउग्गेणं विहरइ। तओ पच्छा समणत्तण-परितंते ड र समणत्तण-णिव्विण्णे समणत्तण-णिब्भत्थिए समणगुण-मुक्कजोगी थेराणं अंतियाओ सणियं सणियंट 15 पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव पुंडरीगिणी णयरी, जेणेव पुंडरीयस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, डा र उवागच्छित्ता असोगवणियाए असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टगंसि णिसीयइ, णिसीइत्ता ट 15 ओहयमणसंकप्पे जाव झियायमाणे संचिट्ठइ। र सूत्र १५ : अनगार कुंडरीक ने पुण्डरीक राजा की इस बात पर ध्यान नहीं दिया और मौन ही र रहे। पुण्डरीक ने दो तीन बार यह बात दोहराई। इस पर लज्जित हो तथा बड़े भाई का सम्मान द 15 रखने के लिए अनिच्छापूर्वक कुंडरीक ने राजा पुण्डरीक से प्रस्थान करने की अनुमति माँगी। डा र अनुमति प्राप्त कर वह स्थविर मुनि के साथ अन्य जनपदों में विचरने लगा। कुछ काल तक तो वह ड र स्थविर मुनि के साथ उग्र विहार करता रहा पर फिर श्रमण जीवन से थक गया। उसे ऐसे कठिन ट 5जीवन में ऊब और अरुचि हो गई। फलस्वरूप वह साधुता के गुणों से रहित हो गया और द 5 धीरे-धीरे स्थविर मुनि से दूर होने लगा। अन्ततः उनका साथ छोड़ पुण्डरीकिणी नगरी आ गया। S र राजभवन के निकट पहुँच अशोकवाकिटा में एक श्रेष्ठ अशोक वृक्ष के नीचे पड़ी एक शिला पर टे र बैठ गया। भग्न मनोरथ उदास हो वह चिंता में डूब गया। र 15. Ascetic Kandareek did not pay any attention to the king's statement Pand remained silent. The king repeated the statement two-three times. Now, Bashamed of himself and in order to honour his elder brother's advice ascetic 5 Kandareek sought permission to leave, though unwillingly. On getting the 5 permission he joined the Sthavir ascetic and resumed the itinerant life. For 5 some time he continued the ascetic life but in the end he got tired of the 5 harsh life. His dislike for such harsh life increased further. Consequently he lost the virtues of an ascetic and gradually distanced himself from the Sthavir ascetic. Finally he departed his company and returned to Pundarikini. He reached the palace and sat down on a rock under an Ashok 5 tree in a nearby garden. In dejection he sat brooding. 15 सूत्र १६ : तए णं तस्स पोंडरीयस्स अम्मधाई जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, र उवागच्छित्ता कंडरीयं अणगारं असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टयंसि ओहयमणसंकप्पं जाव 15झियायमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव पोंडरीए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागिच्छत्ता पोंडरीयं रायं डा एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! तव पियभाउए कंडरीए अणगारे असोगवणियाए ही र असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टे ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ।' 5 CHAPTER-19 : PUNDAREEK ( 335) द Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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