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________________ ( २६२ ) तप णं पंडुराया ते पंच पंडवे एवं वयासी - कहं णं पुत्ता ! तुब्भे कण्हेणं वासुदेवेण णिव्विसया आणत्ता ? ' तए णं ते पंच पंडवा पंडुरायं एवं वयासी - ' एवं खलु ताओ ! अम्हे अमरकंकाओ पडिनियत्ता लवणसमुदं दोन्निं जोयणसयसहस्साइं वीइवइत्ता तए णं से कण्हे वासुदेवे अम्हे एवं वयासी - 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! गंगामहाणदि उत्तरह जाव चिट्ठह, ताव अहं एवं तहेव जाव चिट्ठेमो। तए णं से कहे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवई दट्ठूण तं चैव सव्वं, नवरं कण्हस्स चिंता ण बुज्झति, जाव अम्हे णिव्विस आणवेइ ।' 背 सूत्र २०३ : उधर पाँचों पाण्डव हस्तिनापुर पहुँचे और राजा पाण्डु के पास जा हाथ जोड़कर बोले - " हे तात ! कृष्ण ने हमें देश निकाले की आज्ञा दी है । " ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र राजा पाण्डु ने पूछा - " पुत्रो ! कृष्ण वासुदेव ने तुम्हें किस कारण ऐसी आज्ञा दी ?" तब पाण्डवों ने अमरकंका से लौटने लवण समुद्र पार करने, और गंगा महानदी उतरने से लेकर देश निकाले की आज्ञा मिलने तक की सम्पूर्ण घटना का सविस्तार वर्णन किया । 203. The five Pandavs returned to Hastinapur, went to King Pandu and after greetings said, "Father! Krishna Vasudev has exiled us." King Pandu asked, "Sons! For what reason Krishna has given such order?" The Pandavs narrated in details all the incidents including departure from Amarkanka city, crossing the sea, crossing the Ganges, and getting the order of exile. सूत्र २०४ : राजा पाण्डु ने पाण्डवों से कहा - ' वाला काम करके अच्छा नहीं किया।" सूत्र २०४ : तए णं से पंडुराया ते पंच पंडवे एवं वयासी - 'दुट्टु णं पुत्ता ! कयं कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणेहिं ।' ( 262 ) 204. King Pandu commented, “ Sons! It is not befitting you to have done something that annoyed Krishna Vasudev." 5 Jain Education International - " पुत्रो ! तुमने कृष्ण वासदेव को अप्रिय लगने कुन्ती का कृष्ण के पास जाना सूत्र २०५ : तए णं पंडू राया कोंति देविं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिया ! बारवई कण्हस्स वासुदेवस्स णिवेदेहि - ' एवं खलु देवाणुप्पिया ! तुम्हे पंच पंडवा ( णिव्विसया आणत्ता, तुमं च णं देवाणुप्पिया ! दाहिणड्ढभरहस्स सामी, तं संदिसंतु णं देवाप्पिया ! ते पंच पंडवा कयरं देसं वा दिसिं वा विदिसिं वा गच्छंतु ? ' JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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