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प्रज्ज्ज्ज्ज्
सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
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समाणी ममं नो आढाइ, जाव नो पज्जुवासइ । तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करित्त ' त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पंडुयरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पयणिं विज्जं आवाहेइ, आवाहित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव विज्जाहरगईए लवणसमुदं मज्झमज्झेणं पुरत्थाभिमुहे वीइवइउ पत्ते यावि हत्था |
सूत्र १३७ : द्रौपदी का यह व्यवहार देख कच्छुल्ल नारद को इस प्रकार का अध्यवसाय व चिन्तित, प्रार्थित तथा मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ - “ अहो ! यह द्रौपदी देवी अपने रूप, यौवन और लावण्य पर तथा पाँचों पाण्डवों की विवाहित होने पर अभिमान करने लगी है। इसी कारण यह मेरा आदर, उपासना आदि नहीं करती है। अतः इसका कुछ अनिष्ट करना अच्छा होगा ।" यह विचार आने पर नारद ने राजा पाण्डु से विदा ली और उत्पतनी विद्या का आह्वान कर आकाश मार्ग द्वारा उत्कृष्ट विद्याधर गति से लवणसमुद्र के बीच होते हुए पूर्व दिशा की ओर प्रस्थान कर गये ।
137. This behaviour of Draupadi forced Kacchull Narad to consider, worry, wish and think, "Oh! This Draupadi is filled with conceit for her beauty, youth and charm and also for being the wife of the five Pandavs. That is why she does not respect or worship me. As such, I should put her in a messy situation in order to teach her a lesson." He at once took leave of King Pandu and invoking the Utpatini power he proceeded east over the sea with divine speed.
अमरकंका में आगमन
सूत्र १३८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धदाहिएद्ध-भरहवास अमरकंका नाम रायहाणी होत्था । तत्थ णं अमरकंकाए रायहाणीए पउमणाभे णामं राया होत्था, महया हिमवंत वण्णओ । तस्स णं पउमणाभस्स रण्णो सत्त देवीसयाइं ओरोहे होत्था । तस्स णं पउमणाभस्स रण्णो सुनाभे नामं पुत्ते जुवराया यावि होत्था । तए णं से पउमनाभे राया अंत अंतेउसि ओरोहसंपरिवुडे सिंहासनवरगए विहर |
सूत्र १३८ : काल के उस भाग में धातकीखण्ड नामक द्वीप में पूर्व दिशा के दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र में अमरकंका नाम की राजधानी थी। वहाँ का राजा पद्मनाभ था जो हिमवन्त पर्वत के समान महान था । उसके अन्तःपुर में सात सौ रानियाँ थीं। उसके पुत्र व युवराज का नाम सुनाभ था। उस समय राजा पद्मनाभ अपने अन्तःपुर में रानियों के साथ सिंहासन पर बैठा था ।
ARRIVAL IN AMARKANKA
138. During that period of time there was a capital city named Amarkanka in the southern half of the eastern Bharat area in the Dhatkikhand continent. The king there was Padmanaabh who was as illustrious as the Himalayas. He had seven hundred queens. The name of his
CHAPTER-16: AMARKANKA
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