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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सूत्र ५८ : फिर उन सेवकों ने भिखारी का अलंकार कर्म ( शरीर- शोभा, हजामत आदि) ) करवाया। फिर शतपाक तथा सहस्रपाक तेल से मालिश करवायी । सुगंधित पदार्थों से उबटन करवाई। उष्णोदक, (गर्म पानी) गंधोदक और शीतोदक से स्नान करवा कर रोंयेदार और कोमल कषाय ( गेरुआ ) रंग के तौलिए से शरीर पोंछा । हंस जैसे सफेद वस्त्र पहनाये। और फिर सब ) प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया। तत्पश्चात् पेट भर कर भोजन करवा कर वे उसे सागरदत्त के पास ले गये ।
58. The servants trimmed his hair and nails and did other cleansing on his body. After that they gave him a massage with medicated and flavoured oils like Shata-pak and Sahastra-pak. After the massage the excess oil was removed by rubbing his body with perfumed pastes(Ubatan). Then they helped him take cold and hot bath with perfumed water. His body was dried with soft, fluffy and grey towels. He was then helped into white apparels and was adorned with a variety of ornaments. Finally after feeding him well they presented him before Sagardatt.
सूत्र ५९ : तए णं सागरदत्ते सूमालियं दारियं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं करिता तं ) दमगपुरिसं एवं वयासी - 'एस णं देवाणुप्पिया ! मम धूया इट्ठा, एयं च णं अहं तव भारियताए दलामि भहियाए भद्दओ भविज्जासि ।
सूत्र ५९ : उधर सागरदत्त ने अपनी पुत्री सुकुमालिका को स्नानादि करवाकर सब प्रकार के वस्त्र अलंकारों से सजा कर तैयार किया। भिखारी के आने पर उससे कहा - "हे देवानुप्रिय ! यह मेरी पुत्री है और मुझे इष्ट-प्यारी है। मैं इसे तुम्हें भार्या के रूप में देता हूँ । इस भाग्यशालिनी के ) लिए तुम भाग्यवान बन जाओगे ।"
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59. In the mean time Sagardatt got his daughter ready by having her hathed, dressed up and adorned with ornaments. When the beggar was brought before him he said, "Beloved of gods! This is my beloved daughter. I give her to you as your wife. This lucky girl will prove to be the harbinger of good luck for you."
) पुनः परित्याग
सूत्र ६० : तए णं से दमगपुरिसे सागरदत्तस्स एयमहं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता सूमालियाए दारियाए सद्धिं वासघरं अणुपविसइ, सूमालियाए दारियाए सद्धिं तलिगंसि निवज्जइ ।
तणं से दमपुरिसे सूमालियाए इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ, सेसं जहा सागरस्स जाव सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्टित्ता वासघराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता खंडमल्लगं खंडघड 'च गहाय मारामुक्के विव काए जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए ।
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
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