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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 99. The tenth emissary was sent to other villages, towns, and cities and 5 invitatios were extended with due honour to thousands of other rulers. 5 सूत्र १00 : तए णं से दूए तहेव निग्गच्छइ, जेणेव गामाऽगर नगर जाव समोसरह। र सूत्र १00 : वह दूत पूर्ववत निकलकर ग्रामादि में गया और पूर्ववत् राजाओं को निमन्त्रण टा 15 दिया।
100. This last emissary went to numerous villages, etc. and extended 5 invitations as mentioned before. र सूत्र १०१ : तए णं ताइं अणेगाइं रायसहस्साई तस्स दूयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म र हट्टतुट्टा तं दूयं सक्कारेंति, संमाणेति, सक्कारित्ता संमाणित्ता पडिविसज्जिंति। 15 सूत्र १०१ : अनेक हज़ार राजाओं ने उस दूत से संदेश सुन-समझकर प्रसन्न हो उसे ड
र सत्कार-सम्मान सहित विदा किया। 5 101. These thousands of kings were pleased and contented to get the $ invitation and bid the emissary farewell with due honour. र सूत्र १०२ : तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तेयं पत्तेयं ण्हाया संनद्ध-बद्ध-ट 5 वम्मियकवया हत्थिखंधवरगया हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धि ड र संपरिवुडा महया भड-चडगर-पहगरविंदपरिक्खित्ता सएहिं नगरेहितो अभिनिग्गच्छंति, 7 E अभिनिगच्छित्ता जेणेवे पंचाले जणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। र सूत्र १०२ : वासुदेव के समान ही सभी राजाओं ने तैयारी की और हाथियों पर बैठ र अपनी-अपनी सेना के साथ अपने-अपने नगर से निकल कर कांपिल्यपुर को प्रस्थान किया।
102. Like Krishna Vasudev all the kings made preparations and riding 3 their elephants they left their cities with their armies and proceeded towards P_Kampilyapur city. F अतिथि-स्वागत की तैयारी 15 सूत्र १०३ : तए णं से दुवए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-'गच्छह डा
णं तुम देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे बहिया गंगाए महानदीए अदूरसामंते एगं महंध E सयंवरमंडवं करेह अणेगखंभसयसन्निविटुं, लीलट्ठियसालभंजियागं' जाव पच्चप्पिणंति। र सूत्र १०३ : उधर राजा द्रुपद ने सेवकों को बुला कर कहा-“देवानुप्रियो ! तुम जाकर ड र कांपिल्यपुर नगर के बाहर गंगा नदी से न अधिक पास न अधिक दूर एक विशाल स्वयंवर मण्डप ट 5 बनाओ जो सैंकड़ों स्तम्भों से बना हो, जिन पर लीला करती पुतलियाँ बनी हों और जो मन को दी 15 प्रफुल्लित करने वाला तथा सुन्दर, दर्शनीय और रमणीक हो।" सेवकों ने मण्डप तैयार करके राजा र को सूचित किया। र (212)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 LEAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
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