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________________ TTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTT [ ( १८८) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 सूत्र ४६ : सागर ने पुनः दूसरी बार भी सुकुमालिका का वैसा ही तीक्ष्ण एवं कठोर स्पर्श र अनुभव किया पर कुछ देर विवशता पूवर्क पूर्ववत् सोया रहा। है जब सुकुमालिका पुनः सो गई तो वह चुपचाप शय्या से उठा और शयनागार का द्वार खोला।द 15 वह वहाँ से अपने घर की ओर ऐसे भागा जैसे मारने वाले पुरुष से छुटकारा पाकर काक पक्षी डा र भागता है। N ABANDONED BY HER HUSBAND _____46. When Sukumalika was asleep again, Sagar stealthily got up from the डा bed and opened the door of the room. He ran back to his own house as if he was chased by a ghost. 5 सूत्र ४७ : तए णं सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पइव्वया जाव अपासमाणी र सयणिज्जाओ उढेइ, सागरस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेमाणी वासघरस्स दारंट 5 विहाडियं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–गए से सागरे' त्ति कटु ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ। र सूत्र ४७ : कुछ देर बाद सुकुमालिक दारिका जागी और पति को अपने पास न देखकर शय्या है 5 से उठ खड़ी हुई। उसने चारों ओर सागर को खोजा और खुला द्वार देखकर समझ गई कि सागर द 5 चला गया है। उसका मन उदास हो गया और वह हथेली में मुँह छुपाकर चिन्तामग्न हो आर्तध्यान डी करने लगी। 47. After some time Sukumalika awoke once again. She found that her husband was not in the bed. She got up and searched around. When she found the doors of the bedroom open she realized that Sagar had gone away. She became sad and sat down brooding, covering her face with her palms. 15 सूत्र ४८ : तए णं सा भद्दा सत्थवाही कल्लं पाउप्पभायाए दासचेडियं सहावेइ, सहावित्ता E एवं वयासी-'गच्छह णं तुम देवाणुप्पिए ! वहुवरस्स मुहधोहणियं उवणेहि।' र तए णं सा दासचेडी भद्दाए एवं वुत्ता समाणी एयमहूँ तह त्ति पडिसुणेइ, मुहधोवणियं । E गेण्हित्ता जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं जाव झियायमाणिं दी F पासइ, पासित्ता एवं वयासी-'किं णं तुमं देवाणुप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा झियाहि ?' 5 सूत्र ४८ : सुबह होने पर भद्रा सार्थवाही ने घर की दासी को बुला कर कहा-“देवानुप्रिये ! र वर-वधू के लिए मुख धोने (दांतोन पानी आदि) का सामान ले जा।" 5 दासी ने भद्रा की आज्ञा स्वीकार की और आवश्यक सामग्री लेकर सुकुमालिका के शयनागार दे रे में गई। वहाँ सुकुमालिका को चिन्तित देखकर उसने पूछा-“देवानुप्रिये ! तुम इस प्रकार भग्न 51 र मनोरथ (मनोरथ टूट गये हों) हो चिन्ता क्यों कर रही हो?' (188) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Snnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn AVAMAnnnnnnnn जान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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