________________
र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
( २४३ ) हा 5 166. Hearing the war trumpets the Dashar braves including a » Samudravijaya and all the fifty six thousand Yadav braves got ready after 9 2 donning armour. They collected their weapons and arrived at the Sudharma
assembly of Krishna Vasudev riding elephants, horses, etc. and accompanied ] 5 by their soldiers. They greeted Krishna joining their palms.
__सूत्र १६७ : तए णं कण्हे वासुदेवे हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं S र सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे महया हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं ट 15 संपरिवुडे महया भड-चडगर-पहकरेणं बारवईए णयरीए मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता ८ 5 जेणेवे पुरथिमवेयाली तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचहिं पंडवेहिं सद्धिं एगयओ मिलइ, र मिलित्ता खंधावारणिवेसं करेइ, करित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता सुत्थियं देवं । 5 मणसि करेमाणे करेमाणे चिट्ठइ। र सूत्र १६७ : तब कृष्ण वासुदेव स्वयं श्रेष्ठ हाथी पर आरूढ़ हुए। उनके सर पर सफेद कोरंट डा र फूलों की मालाओं का छत्र लगाया गया और दोनों पार्श्व में श्वेत चामर डुलाये जाने लगे। वेट 15 विशाल, घोड़े, हाथी, रथ तथा पदाति योद्धाओं से बनी चतुरंगिणी सेना और अन्य सुभटों सहित डा र द्वारका नगर के बीच से निकले और पूर्व दिशा में समुद्र तट पर जा पहुंचे। वहाँ पाण्डवों से मिले ही ए और सेना का पड़ाव (स्कंधावार) डालकर पौषधशाला में गये। वहाँ लवणसमुद्र के आरक्षक सुस्थित टा 15 देव के ध्यान में स्थित हो गये।
167. Now Krishna himself rode a king elephant. A canopy made up of R garlands of Korant flowers was fixed over his head and on both his flanks ] 5 white whisks were being plied. He passed through Dwarka city with his large a 5 four pronged army comprising of elephants, horses, chariots and foot
soldiers, and many other warriors and proceeded to the eastern sea coast. After making camp and meeting the five Pandavs he went to the Paushadh2 shala (place for meditation). There he started meditation to invoke god ,
Susthit, the care-taker of the Lavan sea. 15 सूत्र १६८ : तए णं कण्हस्स वासुदेवस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि सुट्टिओ जाव डा र आगओ-'भण देवाणुप्पिया ! जं मए कायव्वं।'
तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्टियं देवं एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! दोवई देवी जाव पउमनाभस्स रण्णो भवणंसि साहरिया, तं णं तुम देवाणुप्पिया ! मम पंचहिं पंडवेहिं सद्धिंड र अप्पछट्टस्स छहं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियराहि। जाणं अहं अमरकंकारायहाणिं दोवईए टी 5 देवीए कूवं गच्छामि।' र सूत्र १६८ : श्रीकृष्ण वासुदेव का अष्टमभक्त (तेला) पूर्ण होने पर सुस्थित देव उनके निकट 5 प्रकट होकर बोला--"देवानुप्रिय ! कहिए मुझे क्या करना है ?" 15 CHAPTER-16 : AMARKANKA
(243) yunnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org