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नवम अध्ययन : माकन्दी
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सूत्र ५६ : तए णं जिणपालियं अन्नया कयाइ सुहासणवरगयं अम्मापियरो एवं वयासी - 'कह णं पुत्ता ! जिणरक्खिए कालगए?
सूत्र ५६ : कुछ दिनों बाद आराम करते हुए जिनपालित से उसके माता-पिता ने पूछा - "हे पुत्र ! जिनरक्षित की मृत्यु कैसे हुई ?"
56. After a few days rest when Jinapalit recovered, his parents asked, "Son! How did Jinarakshit die?"
सूत्र ५७ : तए णं जिणपालिए अम्मापिऊणं लवणसमुद्दोत्तारं च कालियवाय- समुत्थणं च पोयवहण - विवत्तिं च फलगखंड आसायणं च रयणदीवुत्तारं च रयणदीवदेवयागिहं च भोगविभूई रयणदीवदेवयाघायणं च सूलाइयपुरिसदरिसणं च सेलगजक्ख आरुहणं 'रयणदीवदेवयाउवसग्गं च जिणरक्खियविवत्तिं च लवणसमुद्दउत्तरणं च चंपागमणं च सेलगजक्ख आपुच्छणं च जहाभूयमवितह-मसंदिद्धं परिकहेइ ।
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सूत्र ५७ : जिनपालित ने लवणसमुद्र में यात्रा आरम्भ, तूफान का आना, जहाज का नष्ट होना, लकडी के लट्टे का मिलना, रत्नद्वीप में पहुँचना, वहाँ की देवी के घर जाना, वहाँ के भोग व वैभव तथा वधस्थल पर जाना, शूली पर टंगे पुरुष के दर्शन, शैलक यक्ष की पीठ पर चढना, देवी द्वारा उपसर्ग करना, जिनरक्षित की मृत्यु, लवण समुद्र को पार कर चम्पानगरी पहुँचना और शैलक की विदा आदि सभी घटनाएँ यथारूप ज्यों की त्यों और असंदिग्ध रूप में अपने माता-पिता को सुना दी।
57. Beginning from the commencement of the sea voyage Jinapalit narrated all the incidents in detail as they had occurred.
सूत्र ५८ : तए णं जिणपालिए जाव अप्पसोगे जाव विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहर | सूत्र ५८ : तपश्चात् शोक मुक्त हो जिनपालित मानवोचित विपुल भोगोपभोग का आनन्द लेता जीवन व्यतीत करने लगा।
58. And then, overcoming his grief Jinapalit resumed his normal life enjoying all the pleasures of life.
उपसंहार
सूत्र ५९ : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव समोसढे । परिसा निग्गया । कूणिओ वि राया निग्गओ । जिणपालिए धम्म 'सोच्चा पव्वइए । एक्कारसअंगविऊ, मासिएणं भत्तेणं जाव सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववन्ने, दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, जाव महाविदेह सिज्झिहिइ ।
CHAPTER-9: MAKANDI
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